धान

चावल पर जीवाणु का पाला लगना

Xanthomonas oryzae pv. oryzae

बैक्टीरिया

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संक्षेप में

  • पत्तियों पर भूरे हरे रंग की धारियाँ।
  • पत्तियों का पीला पड़ना और मुरझाना।
  • पत्तियों से दूधिया द्रव गिरता है।

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लक्षण

अंकुरों पर संक्रमित पत्तियाँ पहले पीले से भूसे जैसे रंग की हो जातीं हैं फिर मुरझा कर मर जातीं हैं। विकसित पौधों पर प्रकोप की अवधि मुख्यतः अंकुर निकलने से लेकर पुष्पगुच्छों के निर्माण तक का समय है। पत्तियों पर हलके हरे से भूरे-हरे पानी से भरे हुए धब्बे दिखाई देने लगते हैं। बाद में, इन घावों का विलय हो जाता है और असमान किनारों वाले बड़े पीलापन लिए हुए सफ़ेद घाव बन जाते हैं। पत्तियाँ पीली हो जातीं हैं और धीरे-धीरे मुरझा कर मर जातीं हैं। संक्रमण के अंतिम चरण में, पत्तियों से दूधिया जीवाणु वाला रिसाव गिरते देखा जा सकता है। ये बूंदें बाद में सूख कर सफेद पपड़ी छोड़ जातीं हैं। यह विशेषता इस रोग को कुछ तने के छिद्रकों के कारण हुए नुकसान से अलग दिखाती है। जीवाणु का पाला चावल के कुछ सबसे गंभीर रोगों में से एक है।

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जैविक नियंत्रण

आज तक, चावल के जीवाणु के पाले को नियंत्रित करने के लिए कोई भी जैविक उत्पाद व्यावसायिक रूप से उपलब्ध नहीं है। कॉपर पर आधारित उत्पादों का प्रयोग लक्षणों को बढ़ाने या कम करने में सहायक हो सकता है किंतु रोग को नियंत्रित नहीं कर सकता है।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा निरोधात्मक उपायों के साथ जैविक उपचार यदि उपलब्ध हों, के समावेश पर विचार किया जाना चाहिए। जीवाणु के पाला पड़ने का मुकाबला करने के लिए, किसी प्रमाणित एंटीबायोटिक के साथ कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या कॉपर सल्फेट से बीजों के उपचार की सलाह दी जाती है।कुछ देशों में एंटीबायोटिक का प्रयोग कड़ाई से बाधित होता है, इसलिए कृपया अपने देश मे प्रचलित उपायों को जांच लें।

यह किससे हुआ

लक्षण जीवाणु जेन्थोमोनस ओरिजे पीवी ओरिजे के कारण होते हैं। जो खर-पतवार की घास और संक्रमित पौधों के डंठलों पर जीवित रहते हैं। जीवाणु का प्रसार हवा, वर्षा की बौछार या सिंचाई के पानी से होता है । इस प्रकार खराब मौसम (बार-बार वर्षा, हवा) , उच्च आर्द्रता (70% से अधिक)और ऊष्ण तापमान (25 से 34 डिग्री से.) के दौरान रोग का प्रकोप और तीव्रता बढ़ जाती है। नाइट्रोजन उर्वरकों का अधिक उपयोग और पास-पास रोपाई रोग के अनुककोल होती है, विशेषतः संवेदनशील प्रजातियों में। जितनी जल्दी रोग का प्रकोप होता है, उतनी अधिक उपज की हानि होती है। जब पुष्पगुच्छों के विकास के समय पौधे संक्रमित होते हैं उपज अप्रभावित रहती है किंतु टूटे हुए दानों का अनुपात उच्च होता है। रोग ऊष्ण कटिबंधीय और समशीतोष्ण दोनो परिस्थितियों में होता है, विशेषतः सिंचित तथा वर्षा पोषित निचले इलाकों में।


निवारक उपाय

  • सिर्फ स्वस्थ और यदि संभव हो तो प्रमाणित स्त्रोतों से प्राप्त बीजों का उपयोग करें।
  • चावल की प्रतिरोधी प्रजातियों को लगाएं, यह रोग को नियंत्रित करने का सबसे कुशल और विश्वसनीय (साथ ही सबसे सस्ता!) उपाय है।
  • रोपाई के समय छोटे पौधों के साथ सावधानीपूर्वक कार्य करें।
  • एक दूसरे में संक्रमण होने से बचने के लिए खेतों और पौधशाला में अच्छी जलनिकासी सुनिश्चित करें।
  • नाइट्रोजन उर्वरक के अत्यधिक प्रयोग से बचने के लिए इसकी मात्रा को समायोजित करें और प्रयोग को मौसम के दौरान टुकड़ों में बांटें।
  • जब मौसम की परिस्थितियाँ अनुकूल हों तब नाइट्रोजन के अंतिम प्रयोग के साथ पोटाश की अतिरिक्त मात्रा का भी प्रयोग करें।
  • नाइट्रोजन के यूरिया के रूप में प्रयोग से बचें।
  • क्यारियों तथा आसपास से खर-पतवार और वैकल्पिक धारकों को हटा कर नष्ट कर दें।
  • चावल के डंठल, भूसा, रातून और स्वैच्छिक अंकुर जो जीवाणु के लिए धारक का कार्य कर सकते हैं को जुताई कर मिट्टी में दबा दें।
  • मौसमों के मध्य खेतों को सूखने दें (परती छोड़ें) जिससे मिट्टी तथा पौधों के अवशेषों में स्थित रोगवाहक दब जाएं।

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