पपीता

पपीते की पत्तियों को मोड़ने वाला विषाणु

PaLCV

वाइरस

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संक्षेप में

  • ऊपरी पत्तियाँ नीचे तथा अन्दर की ओर मुड़ जाती है।
  • शिराओं का मोटा तथा पारदर्शी हो जाना।
  • पत्तियाँ चमड़े जैसी तथा खुरदुरी हो जाती हैं।
  • पत्तियों के गिर जाने से विकास अवरुद्ध हो जाता है।
  • कम,छोटे और विकृत फल।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें

पपीता

लक्षण

इस रोग का सबसे स्पष्ट लक्षण पत्तियों का नीचे या भीतर की ओर मुड़ना है। अन्य लक्षणों में कभी-कभी बाहरी बढ़वार के साथ पत्तियों की शिराओं का मोटा होना शामिल है। पत्तियाँ चमड़े जैसी तथा खुरदुरी हो जाती हैं तथा डंठलों में प्रायः मुड़ाव आ जाता है। ऊपरी पत्तियां सर्वाधिक प्रभावित होती हैं। रोग की बाद की अवस्था में पत्तियाँ झड़ जाती हैं, पौधे का विकास अवरुद्ध हो जाता है, तथा फूलों और फलों के उत्पादन पर असर पड़ता है। यदि फल होते भी हैं, तो वे छोटे और आकृति में विकृत होते हैं तथा असमय गिर जाते हैं।

Recommendations

जैविक नियंत्रण

माहू द्वारा विषाणु को ग्रहण करने और प्रसार करने से रोकने के लिए सफ़ेद तेल पायस (1%) का छिड़काव करें।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए।| विषाणुजनक संक्रमण का कोई रासायनिक उपचार नहीं है। लेकिन, सफ़ेद मक्खियों की जनसंख्या को नियंत्रित करने से संक्रमण की तीव्रता कम की जा सकती है। बुआई के समय मिट्टी में डाईमेथोटेट या मेटासिस्टोक्स के 10 दिनों के अंतराल पर पत्तियों पर 4-5 छिड़काव से सफ़ेद मक्खियों की जनसंख्या को प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता है।

यह किससे हुआ

इस विषाणु के प्रसार का मुख्य रोगवाहक, सफ़ेद मक्खी बेमिसिया टाबाकी, है। यह विषाणु को एक पौधे से दूसरे पौधे तक गैर-निरंतर तरीके से फैलाता है। इसका अर्थ यह है कि जब विषाणु रोगवाहक में सक्रिय होता है, तब कुछ ही सेकंड में इसका प्रसार होता है। रोग के प्रसार के अन्य तरीकों में संक्रमित अंकुर या बीजों के साथ-साथ कलम लगाने के पदार्थ भी शामिल हैं। पपीते की पत्तियों में मुड़ाव पैदा करने वाले विषाणु खेतों में मशीनी कार्य करते समय नहीं फैलते हैं। वैकल्पिक धारक टमाटर और तम्बाकू के पौधे हैं। विषाणु बड़े पैमाने पर फैला हुा है, किन्तु अब इसका प्रकोप कम हो गया है। हालांकि, कुछ विशेष मामलों में, इसके कारण अत्यधिक आर्थिक हानि होती है।


निवारक उपाय

  • उपलब्ध प्रतिरोधक क़िस्मों के बारे में पता करें।
  • पपीतों के पास वैकल्पिक धारकों को न उगायें।
  • लाभप्रद कीटों को बचाने के लिए बड़े पैमाने पर कीटनाशकों के प्रयोग से बचें।
  • संक्रमित पौधों को जड़ से उखाड़ दें तथा उन्हें नष्ट कर दें।
  • धयान रखें कि फसल कटने के बाद पौधों का कोई भी अवशेष न छूटे।

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