बैंगन

मिर्च का कोयनेफ़ोरा अंगमारी

Choanephora cucurbitarum

फफूंद

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संक्षेप में

  • कवक आमतौर पर पौधों के ऊपरी हिस्सों को पहले संक्रमित करता है और फिर नीचे की ओर बढ़ता है।
  • पत्तियाँ और कलियाँ गीली और चांदी जैसे रंग की हो जाती हैं तथा सड़ने लगती हैं।
  • फलों के हिस्से भूरे से काले रंग में बदल जाते हैं, अक्सर खिलने वाले भाग पर।
  • संक्रमित ऊतकों पर कवक विकसित होने से एक परत स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

में भी पाया जा सकता है

21 फसलें
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कैबेज(पत्तागोभी)
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बैंगन

लक्षण

शुरुआती लक्षणों में फूलों, कलियों या विकास बिंदुओं का गहरे रंग का होना और मुरझाना शामिल है (बौरों की अंगमारी)। इसके बाद, रोग नीचे की तरफ़ बढ़ता है, और पत्तियों पर पानी से भीगे घाव पैदा करता है, जिससे उनका रंग चांदी जैसा हो जाता है। पुराने घाव गल जाते हैं और सूखे हुए दिखते हैं, जिससे पत्तियों की नोक और किनारें झुलसे हुए नज़र आते हैं। तनों पर, सड़न के निशान भूरे से काले धब्बों के रूप में दिखते हैं और वे नोक से शुरू होकर मरने लगते हैं। अंत में, पूरा पौधा मुरझा सकता है। नए फलों पर, आमतौर पर बौरों के सिरे पर, एक काली नर्म सड़न विकसित हो सकती है। ध्यान से देखने पर, संक्रमित ऊतकों पर चांदी के रंग के बालों जैसी वृद्धि दिखाई देती है। अंकुरों पर, लक्षणों को अक़्सर फ़ाइटोफ़्थोरा अंगमारी के लक्षणों के रूप में समझा जा सकता है।

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जैविक नियंत्रण

इस बीमारी का कोई वास्तविक जैविक उपचार नहीं है। बेनिन में, कोयनेफ़ोरा कुकरबिटरम के खिलाफ़ इसके विरोधी प्रभाव के लिए कुछ फसलों में जीवाणु बेसिलस सबटिलिस का परीक्षण सकारात्मक पाया गया है। परंतु, मिर्च पर कोई परीक्षण नहीं किया गया है।

रासायनिक नियंत्रण

यदि उपलब्ध हों, तो हमेशा जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के एकीकृत दृष्टिकोण पर विचार करें। इसकी रोकथाम महत्वपूर्ण है क्योंकि इस बीमारी के लिए कोई कवकनाशी अंकित नहीं हैं। कवकनाशकों के उपयोग से लक्षणों के विकास को रोकने में मदद मिलती है व नियंत्रण पाया जा सकता है, लेकिन ये अक्सर अव्यवहारिक होता है क्योंकि पौधों में लगातार फूल निकलते रहते हैं और इसलिए रोगजनक के प्रति संवेदनशीलता बनी रहती है।

यह किससे हुआ

इनके लक्षण कोयनेफ़ोरा कुकरबिटरम, एक अवसरवादी कवक के कारण होते हैं, जो मुख्य रूप से उन ऊतकों पर हमला करते हैं, जो खेत के काम के दौरान कीड़े या यांत्रिक उपकरणों से क्षतिग्रस्त हो गए होते हैं। इसके बीजाणु आम तौर पर हवा, पानी के छींटों और कपड़ों, औज़ारों और खेती के उपकरणों से फैलते हैं। रोग का प्रकोप आमतौर पर लंबे समय तक बरसात, उच्च आर्द्रता और उच्च तापमान के दौरान होता है। ये आश्चर्य की बात नहीं कि यह उष्णकटिबंधीय जलवायु में बारिश के मौसम में उगाई गयी मिर्च को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाता है। जो फ़सलें इन स्थितियों के लिए अनुकूल नहीं होती हैं, वे विशेष रूप से संवेदनशील रहती हैं। फ़ाइटोफ़्थोरा अंगमारी के साथ अंतर पता करने के लिए, सुबह के समय धूसर रंग के बालों की उपस्थिति के लिए ऊतकों का निरीक्षण करें।


निवारक उपाय

  • बीमारी के संकेतों के लिए खेतों की निगरानी करें।
  • खेतन के भीतर और आसपास वैकल्पिक मेज़बान और खरपतवार निकालें।
  • मिट्टी के संघनन को कम करें और यदि संभव हो तो जल निकासी में सुधार करें।
  • सुनिश्चित करें कि रोपाई के दौरान पौधे के आधार पर कोई गड्ढा न हो।
  • पौधे लगाने पर उनके बीच में जगह बनाये रखें और उभरी क्यारियों और खांचों का इस्तेमाल करें।
  • ऊपरी सिंचाई से बचें और यदि संभव हो तो पत्तियों को सूखा रखें।
  • ऐसे पोषक तत्वों के अत्यधिक उपयोग से बचें जो पौधे की छतरी को घना बनाते हों।
  • गैर-संवेदनशील फसलों के साथ फसल चक्र लागू करें।

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