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मिट्टी-जनित फफूंद के कारण पौधे का मुरझाना (वर्टिसिलियम विल्ट)

Verticillium spp.

फफूंद

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संक्षेप में

  • पत्तियों पर पीलापन - किनारों से आरंभ होते हुए।
  • पत्ती की मुख्य शिरा हरी रहती है।
  • तने पर काली धारियाँ।
  • पौधे का मुरझाना।

में भी पाया जा सकता है

24 फसलें
खुबानी
सेम
करेला
कैबेज(पत्तागोभी)
और अधिक

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लक्षण

फसलों के आधार पर लक्षण बदलते रहते हैं। आम तौर पर, पर्ण हरित हीनता (क्लोरोसिस) पुरानी पत्तियों के किनारों पर पहले दिखाई देती है। जैसे-जैसे क्लोरोसिस बाकी ऊतकों में फैलती है, अक्सर एक ही तरफ़, पत्तियाँ मुरझाने सी लगती हैं। इसे क्षेत्रीय क्लोरोसिस या “एकतरफ़ा मुरझाना” कहते हैं। तने पर काले रंग की धारियां दिखाई देती हैं, जो पौधे के आधार से शुरू करते हुए ऊपर की ओर बढ़ती है, जिससे तना मुरझाने लगता है। वृक्षों में, कम विकास, पत्तियों का जल्द मरना, छोटा रह जाना, और पूरी-पूरी टहनियों का मरना मुख्य लक्षण हैं। लकड़ी के ऊतकों का गोलाकर छल्लों या धारियों के साथ बदरंग होना अतिरिक्त लक्षण हो सकते हैं। कभी-कभी किसी लेंस से पास से देखने पर मरते हुए ऊतकों मे या जीवित ऊतकों में भी छोटे काले धब्बे दिखाई देते हैं।

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जैविक नियंत्रण

स्ट्रेप्टोमायसिस लिडिकास वाले जैव-कवकरोधी कवक के जीवनचक्र को नष्ट करते हैं तथा रोग की बढ़त को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।

रासायनिक नियंत्रण

यदि उपलब्ध हों, तो जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के एकीकृत दृष्टिकोण का उपयोग हमेशा करें। जब वृक्ष इस रोग से ग्रसित होते हैं, तो इससे छुटकारा पाना बहुत मुश्किल होता है। मिट्टी में धूमकों का प्रयोग एक प्रभावी किन्तु महंगी नियंत्रण विधि है। इसका प्रभाव प्रयोग किये गए रसायन, उसकी दर, तथा प्रयोग के समय वातावरण की परिस्थितियों पर निर्भर करता है। पौधे के प्रभावित हिस्सों के उपचार के बारे में भी सोचा जा सकता है।

यह किससे हुआ

वर्टिसिलियम विल्ट मिट्टी में पलने वाले कवक, जैसे वी. डाहलिया, के कारण होता है, जो मेज़बान फ़सलों के उपलब्ध न होने पर मिट्टी में पौधों के अवशेषों में जीवित रह सकते हैं। यह पौधों के शिराओं के ऊतकों में छोटी जड़ों या छाल में बने हुए घावों के द्वारा प्रवेश करते हैं। एक बार पौधों या वृक्षों में प्रवेश करने के बाद यह तेज़ी से बढ़ता है, तथा पानी और पोषक तत्वों के परिवहन को रोक देता है, जिसके कारण पौधे के हवा में स्थित भाग (पत्तियां और तने) मुरझा जाते हैं और सड़ जाते हैं। गर्म और धूपदार मौसम होने पर ये लक्षण बढ़ जाते हैं। रोग की बाद की अवस्थाओं में, कवक मरते हुए ऊतकों में घर बनाता है और गहरे रंग की बनावट पैदा कर लेता है, जिसे सूक्ष्मदर्शी लेंस से देखा जा सकता है। कवक एक ही स्थान पर कई वर्षों तक जीवित रह सकता है।


निवारक उपाय

  • पौधों की प्रतिरोधक अथवा सहनशील प्रजातियों का उपयोग सर्वोत्तम उपाय है।
  • ऐसे संवेदनशील पौधों को साथ-साथ न लगाएं जो इस रोग के फैलाव को बढ़ावा दे।
  • नाइट्रोजन से भरपूर उर्वरकों और ज़्यादा पानी देने से बचें।
  • संक्रमण के विरुद्ध पौधों को मज़बूत करने के लिए पौधों के फ़ोर्टीफ़ायर का प्रयोग करें।
  • पौधों की संक्रमित सामग्री को काटें, हटाएं और जला दें।
  • संक्रमित पौधों पर काम करने के बाद सभी औज़ारों और उपकरणों को साफ़ कर लें।
  • खेतों में उस समय काम न करें जब पत्तियाँ गीली हों।
  • खेत पर काम करते समय ध्यान रखें कि जड़ों को नुकसान न पहुंचे।
  • मिट्टी को कुछ समय के लिए सूर्य के विकिरण (सोलराइज़ेशन) के लिए छोड़ दें।
  • पौधों के अवशेषों को हटा दें और मिट्टी में गहराई में दबा दें या जला दें।
  • गैर-धारक फ़सलों के साथ फ़सल चक्रीकरण करें।

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