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सिल्वर लीफ़ रोग

Chondrostereum purpureum

फफूंद

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संक्षेप में

  • पत्तियों पर हल्की चांदी जैसी चमक।
  • तने और टहनियां गहरी भूरी पड़ जाती हैं और पश्चमारी (डाई बैक) लग जाती है।
  • छाल पर बैक्रेट-आकृति की फफूंद जिसकी ऊपरी सतह सफ़ेद रुई जैसी और निचली सतह बैंगनी-भूरी होती है।

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लक्षण

फफूंद से प्रभावित पत्तियों पर हल्की चांदी जैसी चमक होती है। शुरुआत में ऐसा केवल एक ही शाखा पर होता है पर समय के साथ पेड़ के अन्य हिस्सों में भी हो सकता है। रोग की बाद की अवस्थाओं में पत्तियां टूट जाती हैं और किनारों और मध्य-शिरा के आसपास भूरी पड़ जाती हैं। संक्रमित तनों की छाल के नीचे के अंदर के हिस्से गहरे भूरे पड़ जाते हैं और उनमें पश्चमारी (डाइ बैक) लग जाती है। गर्मियों के अंत और उसके बाद मृत शाखाओं की छाल पर ब्रैकेट-आकृति की फफूंदी बन जाती है। इनकी ऊपरी सतह सफ़ेद रुई जैसी और निचली सतह बैंगनी-भूरी होती है। दोनों तरफ बीजाणु बनाने वाली संरचनाएं होती हैं जो गीली होने पर मुलायम और चिकनी और सूखी होने पर भंगुर और झुर्रीदार होती हैं।

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जैविक नियंत्रण

कई मामलों में, पेड़ सिल्वर लीफ़ के हमले से कुदरती तौर पर उभर जाता है। इसलिए कोई कदम उठाने से पहले थोड़ी देर इंतज़ार करना अच्छा रहता है।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा एक समन्वित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ उपलब्ध जैविक उपचारों का इस्तेमाल करें। जिन क्षेत्रों में सिल्वर लीफ़ की समस्या बार-बार होती है, वहां संवेदनशील पेड़ों में छंटाई के कटावों का पेंट से उपचार करना सर्वमान्य तरीका है। हालांकि कुछ विशेषज्ञ दावा करते हैं कि घावों को कुदरती रूप से भरने देना सबसे अच्छा रहता है।

यह किससे हुआ

लक्षणों का कारण फफूंद कोन्ड्रोस्टेरियम पर्पुरियुम है, जो मुख्य तने और मृत शाखाओं पर फलन काय बनाता है। ये संरचनाएं बीजाणु बनाती हैं जो बाद में छोड़े जाने पर हवा से स्वस्थ पेड़ों और झाड़ियों तक पहुंच जाते हैं। ये ऊतकों में मुख्य रूप से छंटाई से बने घावों से प्रवेश करते हैं। जैसे-जैसे ये लकड़ी के अंदर की तरफ बढ़ते हैं, ये धीरे-धीरे उसे मृत करते जाते हैं जिससे अंदर के हिस्से में विशेष गहरे रंग के दाग़ बन जाते हैं। ये एक विषाक्त पदार्थ भी छोड़ते हैं जो पोषक तत्वों के प्रवाह के साथ पत्तियों में पहुंच जाता है। यह विषाक्त पदार्थ ऊतकों को क्षति पहुंचाता है और उन्हें अलग-अलग कर देता है जिससे उन्हें चांदी जैसी चमक मिलती है। इसलिए, अगर फफूंद पत्तियों में मौजूद नहीं भी होता है, तो भी यह पत्तियों और शाखाओं को मार सकता है। बाद में मृत लकड़ी पर नए फलन काय बनते हैं और चक्र दोबारा शुरू हो जाता है। बिना हवा या सूरज के बूंदाबांदी, बारिश, कुहरे या नमी वाले दिन बीजाणु के फैलने और संक्रमण के लिए सर्वोत्तम हैं।


निवारक उपाय

  • केवल साफ़, रोगाणुरहित औज़ारों का इस्तेमाल करें।
  • पेड़ों को गैर-ज़रूरी घावों से बचाएं।
  • बाग़ की लगातार निगरानी करें।
  • बसंत या गर्मयों के अंत में नियमित छंटाई मुख्य संक्रमण चरण से बचाती है।
  • बारिश के मौसम में छंटाई न करें क्योंकि इससे संक्रमण को बढ़ावा मिलता है।
  • घावों को ढंक दें ताकि बीजाणु वृद्धि न कर सकें।
  • छंटाई के बाद अवशेषों को तुरंत नष्ट कर दें (जलाएं या गहराई में दबा दें) क्योंकि फलन काय लगातार बनते रहते हैं।
  • बाग़ के आसपास विलो और पॉपुलर जैसे अन्य मेज़बान पड़ों को न लगाएं।

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