शिमला मिर्च एवं मिर्च

काला कर्तनकीट (ब्लैक कटवार्म)

Agrotis ipsilon

कीट

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संक्षेप में

  • पत्तियों पर छोटे अनियमित छिद्र।
  • तनों को जमीन के स्तर पर काटें।
  • अवरुद्ध विकास या मृत्यु।
  • पौधों का मुरझाना और गिर पड़ना।

में भी पाया जा सकता है

33 फसलें
सेब
केला
जौ
सेम
और अधिक

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लक्षण

कटवार्म विकास के सभी स्तरों पर बहुत भिन्न प्रकार की फसलों पर हमला करते हैं, किन्तु यह हमला नए अंकुरों पर अधिक होता है। अगर अंकुर फूट रहे हों और खेत के चारों ओर खर-पतवार उगी हों, और उसके साथ बड़ी संख्या में सूंडियाँ मौजूद हों, तो गंभीर हानि हो सकती है। युवा सूंडियाँ, अगर उपलब्ध हों, तो भूमि के पास खर-पतवारों या मकई पर चारा खोजती हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे कोमल पत्तियों पर छोटे अनियमित छिद्र कर देती हैं। उनके बड़े साथी दिन की रोशनी से बचने के लिए भूमि में दबे रहते हैं और पौधे के आधार को खाने के लिए रात को भूमि से निकलते हैं। नए पौधों को भूमि के नीचे खींचा जा सकता है। वे भूमि के स्तर पर तनों को काट सकते हैं, जिसके कारण विकसित होते हुए ऊतकों को हानि पहुँचती है तथा पौधों की वृद्धि विकृत हो जाती है या पौधा मर जाता है। टहनी में सुरंग बनाने के कारण पुराने पौधे शिथिल हो जाते हैं और लटक जाते हैं।

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जैविक नियंत्रण

कटवार्मों के परजीवी ततैयों, मक्खियों और टिड्डों जैसे परभक्षियों सहित कई शत्रु होते हैं। विषाणुओं और फफूंद के रोगाणुओं पर आधारित जैव-कीटनाशक प्रभावी संख्या नियंत्रण प्रदान करते हैं। अनावश्यक उपचार से बचकर प्राकृतिक परभक्षियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

रासायनिक नियंत्रण

अगर उपलब्ध हो, तो जैविक उपचारों के साथ रक्षात्मक उपायों वाले एक संयुक्त दृष्टिकोण पर हमेशा विचार करें। कटवार्मों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए क्लोरपायरिफ़ोस, बीटा- साइपरमेथ्रिन, डेल्टामेथ्रिन, लेमबडा-साइहेलोथ्रिन वाले उत्पादो का प्रयोग किया जा सकता है। रोपण से पूर्व कीटनाशकों का प्रयोग करना भी सहायक हो सकता है, किन्तु ऐसा करने का सुझाव केवल बड़ी संख्या होने की अपेक्षा के मामले में ही दिया जाता है।

यह किससे हुआ

काले कटवार्म एक काले-भूरे रंग के चित्तीदार शरीर के साथ पुष्ट पतंगे होते हैं। उनके बाहरी किनारे की ओर काले चिन्हों के साथ हल्के-भूरे और काले-भूरे रंग के आगे के पंख, तथा सफेद रंग के पीछे के पंख होते हैं। वे नभचर होते हैं और दिन के समय मिट्टी में छिपे रहते हैं। मादाएं नरों के समान दिखाई देती हैं, किन्तु उनका रंग कुछ अधिक गहरा होता है। वे पौधों पर, नम भूमि पर या भूमि की दरारों में अकेले या झुण्ड में मोतियों के समान (जो बाद में हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं) सफेद रंग के अण्डे देती हैं। लार्वा का अण्डे से बाहर निकलना बहुत हद तक तापमान पर निर्भर करता है और इसमें 3 से 24 दिन (क्रमशः 30° से. व 12° से. पर) तक लग सकते हैं। नए लार्वा दिखने में हल्के भूरे रंग के, समतल तथा चिकने होते हैं, तथा उनकी लंबाई 5 से 10 मि.मी. तक होती है। बड़े लार्वा पीठ पर नीचे की ओर जाती हुई दो बिंदुनुमा पीले रंग की धारियों के साथ काले-भूरे रंग के होते हैं, और उनकी लंबाई 40 मि.मी. तक होती है। वे रात व दिन दोनों समय खाते हैं और उन्हें भूमि की सतह के नीचे छोटी संकरी सुरंगों में ‘C‘ के आकार में मुड़े हुए पाया जा सकता है।


निवारक उपाय

  • इस कीट की संख्या को उच्चतम स्तर पर पहुँचने से रोकने के लिए शीघ्र रोपण करें।
  • जिन खेतों में पहले सोयाबीन उगाया गया हो उनमें मकई का रोपण करने से बचें।
  • पौधारोपण करने से 3 से 6 सप्ताह पहले लार्वा को दफ़नाने या उसे परभक्षियों के समक्ष प्रकट करने के लिए खेत की जुताई करें।
  • ब्लैक कटवार्मों को आकर्षित करने के लिए खेत के चारों ओर सूरजमुखी के पौधों का रोपण करें।
  • पौधरोपण करने और उनके उगने के बाद खेत के चारों ओर से खर-पतवारों को हटा दें।
  • पतंगों की निगरानी करने या उन्हें पकड़ने के लिए प्रकाश और फेरोमोन ट्रैप्स का उपयोग करें।
  • कटवाॅर्मों को चोटिल करने और परभक्षियों के समक्ष प्रकट करने के लिए बार-बार जुताई करें।
  • फसल की कटाई के बाद पौधों के अवशेषों को भूमि में गहरा गाड़ दें।
  • पौधारोपण करने से कुछ सप्ताह पहले खेत की जुताई करके छोड़ दें।

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