मैनीक

कसावा की पत्तियों के सफेद धब्बे

Passalora manihotis

फफूंद

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संक्षेप में

  • पत्तियों की ऊपरी तरफ सफेद धब्बे, जो असमान लाल सी रेखा और पीले आभामंडल से घिरे रहते हैं।
  • पत्तियों की निचली तरफ भूरे केंद्र दिखाई देते हैं।

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लक्षण

लक्षण प्रजाति तथा मौसम की परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं। आमतौर पर, क्षति सबसे अधिक पुरानी पत्तियों पर होती है और नई पत्तियों पर क्रमिक रूप से कम होती जाती है। पत्तियों की ऊपरी सतह पर धंसे हुए, सफेद, कोणीय या गोलाकार धब्बे हो जाते हैं, जो प्रायः एक असमान लाल सी रेखा और एक बड़े पीले आभामंडल से घिरे होते हैं। पत्ती के पटल की निचली सतह पर, ये धब्बे धूसर रंग से घिरे दिखते हैं। जैसे-जैसे कवक का विकास होता है और लक्षण बढ़ते हैं, धब्बे एक भूरा, मखमली स्वरूप ले लेते हैं, ऐसा आर्द्र मौसम में विशेषतः दिखता है। यह रोग सामान्यतया कसावा उत्पादन के आर्द्र किंतु ठंडे इलाकों में पाया जाता है।

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जैविक नियंत्रण

आज तक, इस कवक के प्रसार के नियंत्रण के लिए कोई भी जैविक नियंत्रक उपलब्ध नहीं है। रोग से बचाव के लिए, रोगमुक्त रोपण सामग्री का उपयोग तथा समुचित निरोधात्मक उपायों को अपनाना अत्यंत आवश्यक है।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा एक समेकित दृष्टिकोण अपनाएं जिसमें निरोधात्मक उपायों के साथ, यदि उपलब्ध हों, तो जैविक उपचारों का भी समावेश हो। कसावा में पत्तियों के सफेद धब्बों को थियोफ़ेनेट (0.20%), क्लोरथेलोनिल वाले कवकनाशी छिड़कावों के मासिक अंतराल पर प्रयोग से प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता है। कॉपर कवकनाशी, मेटालेक्सिल और मेंकोज़ेब के प्रयोग की भी सलाह दी जाती है। खेतों में खरपतवारों की बढ़त को नियंत्रित करने के लिए तृणनाशकों का भी उपयोग किया जा सकता है।

यह किससे हुआ

लक्षणों का कारण कवक, फ़ेरामुलेरिया मेनिहोटिस, है जो शुष्क मौसम में पौधों पर या भूमि पर पड़ी हुई पुरानी, संक्रमित पत्तियों में जीवित रहता है। अनुकूल परिस्थितियाँ होने पर, ये पत्तियों की निचली सतह पर परिगलित धब्बों के नीचे रोगाणु उत्पन्न करता है। यहाँ से ये रोगाणु नए पौधों तक हवा या वर्षा की बौछारों से पहुंचते हैं। स्वस्थ ऊतकों का भेदन पत्तियों के प्राकृतिक छिद्रों से होता है और जैसे-जैसे कवक पौधों पर बसने लगता है, लक्षण दिखाई देने लगते हैं। लंबी दूरी तक प्रसार तब होता है, जब रोगग्रस्त रोपण सामग्री को अन्य खेतों या बागानों तक ले जाया जाता है। कुछ खरपतवार भी वैकल्पिक मेज़बान का कार्य करते हैं। ये आमतौर पर कसावा के पौधों के लिए हानिकारक नहीं होते हैं और उपज को बहुत अधिक प्रभावित नहीं करते हैं जब तक कि संक्रमण गंभीर न हो। लेकिन, ठंडा और आर्द्र, वर्षा का मौसम कवक के जीवन-चक्र के अनुकूल होता है और रोग की गम्भीरता को बढ़ा सकता है।


निवारक उपाय

  • रोगमुक्त कलमों को उपयोग करने का ध्यान रखें।
  • यदि आपके क्षेत्र में उपलब्ध हों, तो प्रतिरोधी प्रजातियाँ लगाएं।
  • पौधों के मध्य चौड़ा स्थान छोड़ने का ध्यान रखें जिससे कि छतरी में हवा का बेहतर संचरण हो सके।
  • आर्द्र मौसम में पौधे जल्दी लगाएं जिससे कि संवेदनशील अवस्था तक पहुँचने तक (शुष्क मौसम के दौरान 6 -8 महीने की आयु) फसल में पर्याप्त मज़बूती आ जाये।
  • कसावा की नई फसल को रोगग्रस्त होने की अधिक संभावना वाली पुरानी फसल के पास न लगाएं।
  • शुष्क मौसम में संक्रमण के स्त्रोत को नष्ट करने के लिए कसावा की गिरी हुई पत्तियों को एकत्र कर जला दें।
  • इसके बजाय, संक्रमित पौधों को गहराई में दबाया या जलाया भी जा सकता है।
  • प्रति 3 से 5 वर्ष के लिए फसल चक्रीकरण अपनाएं जिससे कि रोगाणु खेत मे कहीं भी जीवित न रह सकें।
  • कसावा की खेती में प्रयोग किसी भी औज़ार के लिए अच्छी स्वच्छता बरकरार रखें।
  • उन स्थानों से रोपण सामग्री न ले जाएं जहाँ संक्रमण की संभावना हो।

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