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रिंकोस्पोरियम

Rhynchosporium secalis

फफूंद

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संक्षेप में

  • पुरानी पत्तियों पर हरितहीन, असमान या हीरे के आकार के घाव फैले होते हैं।
  • घावों का केंद्र सूख जाता है और बदरंग हो जाता है जबकि किनारे भूरे हो जाते हैं।
  • घाव बढ़ जाते हैं और आपस में मिल कर पत्ती के बड़े भाग को घेर लेते हैं।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें
जौ

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लक्षण

रिंकोस्पोरियम संक्रमण की विशेषता इसके अंकुर-आवरण, पत्तियों, पत्तियों के आवरण, भूसी, फूलों के हरित दल तथा बालियों (बाल जैसे परिशिष्ट जो फूलों से निकलते हैं) पर बनने वाले विशिष्ट घाव हैं। आरंभिक लक्षण पुरानी पत्तियों की सतह या शाखा पर हरितहीन, असमान या हीरे के आकार के घाव (1-2 सेमी.) के रूप में सामने आते हैं। फिर घाव एक विशिष्ट स्लेटी रंग के और पानी जैसे लगते हैं। बाद में, घाव का केंद्र सूखने लगता है और बदरंग हो कर हल्का भूरा रंग, धूप में जला हुआ रंग या सफ़ेद हो जाता है। इनके किनारे गहरे कत्थई हो जाते हैं और ये पीले हरितहीन घेरे से घिरे होते हैं। जैसे-जैसे ये बड़े होते हैं, घाव आपस में जुड़ जाते हैं और पत्तियों की शिराओं से सीमित न होते हुए अंडाकार से लम्बाई में गोल होते जाते हैं। नई पत्तियां और छोटे फूल भी गंभीर आक्रमण या बाद के चरणों में संक्रमित हो सकते हैं। फूलों के संक्रमण की विशेषता बालियों के आधार के समीप हल्के धूप में जले जैसे केंद्र और गहरे कत्थई किनारे हैं।

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जैविक नियंत्रण

माफ़ कीजियेगा, हम रिंकोस्पोरियम सिकेलिस के विरुद्ध कोई अन्य उपचार नहीं जानते हैं। यदि आप कुछ जानते हों जिस से इस रोग का सामना करने में सहायता मिले, तो हमसे संपर्क करें। हमें आपके सुझावों का इंतज़ार रहेगा।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा एकीकृत कीट प्रबंधन पर विचार करें, जिसमें जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, के साथ-साथ निवारक उपाय भी शामिल हो। कवकनाशी के साथ बीजों का उपचार प्रारंभिक मौसम की महामारी की संभावना कम करने में सहायक हो सकता है। स्ट्रोबिलुरिन और अनिलिनोपायरिमिडीन समूह से कार्य करने के विभिन्न तरीकों वाले कवकनाशी मिश्रणों का प्रयोग करें।

यह किससे हुआ

रिंकोस्पोरियम बीज में पलने वाला कवक है, जो संक्रमित धारक के अवशेषों, जैसे कि पौधों के अवशेषों, या वैकल्पिक पौधों पर एक वर्ष तक जीवित रह सकता है। बीजाणु छोटी दूरी तक वर्षा की छींटों से और कुछ हद तक हवा से फैलते हैं। बीजाणुओं का निर्माण और संक्रमण 5 से 30 डिग्री से. के तापमान पर हो सकता है। अनुकूल मौसम की परिस्थितियां 15 से 20 डिग्री से. तथा 7 से 10 घंटों की पत्तियों की नमी है। उच्च तापमान पर लक्षण जल्द नज़र आते हैं और अधिक गंभीर होते हैं। यदि सबसे ऊँची पत्ती तथा उसके नीचे की दो पत्तियां प्रभावित हैं तो इसके फलस्वरूप उपज में कमी आती है। यदि सुप्त संक्रमण (बिना लक्षणों का) हो, तो पौधों के अवशेष विषाणु को मौसम दर मौसम जीवित रहने में सहायता करते हैं।


निवारक उपाय

  • अपने क्षेत्र में उपलब्ध सहिष्णु किस्मों का उपयोग करें।
  • सर्दी की जौ और सर्दी की राई की बुवाई देर से करें।
  • खेत के आसपास घास फूस का नियंत्रण करें।
  • कवक के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ होने पर रोग के किसी भी लक्षण के लिए पौधों या खेतों की जांच करें।
  • गैर-मेज़बान फसलों के साथ चक्रीकरण करें।
  • सतह के नीचे पौधे के अवशेषों को दफ़नाने के लिए गहरी जुताई करें।

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