मटर

मटर का ज़ंग वाला रोग

Uromyces pisi

फफूंद

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संक्षेप में

  • पत्तियों तथा डंठलों पर कत्थई रंग के बीजाणुओं की परत।
  • टेढ़ी-मेढ़ी पत्तियाँ।
  • कम विकसित पौधे।

में भी पाया जा सकता है


मटर

लक्षण

पत्तियों के दोनों तरफ़ के साथ-साथ डंठलों पर कत्थई रंग की बीजाणु परत नज़र आती है। सूखे मौसम में, ये बीजाणु परतें फैल जाती हैं। पत्तियाँ टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं तथा संपूर्ण पौधे की वृद्धि बहुत कम होती है। फिर भी, उपज में थोड़ी ही कमी आती है।

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जैविक नियंत्रण

क्षति का प्रायः रोग की बाद की अवस्थाओं में पता चलता है। अधिकाँश मामलों में उपचार आवश्यक नहीं होता क्योंकि आय की हानि बहुत कम होती है।

रासायनिक नियंत्रण

टेबुकोनाज़ॉल पर आधारित कवकनाशकों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

यह किससे हुआ

कवक बल्लार (बेल बींस, बाकला या इंग्लिश बींस के नाम से भी जाना जाता है), वेच तथा स्पर्ज की प्रजातियों पर शीत-शयन करता है। यह वहाँ से वसंत में मटर के पौधों पर फैलता है। सार्दियों में कवक नए मेज़बान पर चला जाता है।


निवारक उपाय

  • आसपास से सभी वैकल्पिक मेज़बान पौधे जैसे कि, विसिया प्रजाति (बाकला) या लैथाइरस (वेक्टलिंग) को हटा दें।

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