टमाटर

टमाटर कैटफेस

Physiological Disorder

अन्य

संक्षेप में

  • बुरी तरह से विकृति, धब्बें और पुष्प पुंजों के छोर तक फलों में दरारों का होना।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें

टमाटर

लक्षण

कैटफेस एक दैहिक विकार है जिसके परिणामस्वरूप अकसर पुष्पपुंजों के छोरों (तथा) फलों में विकृति और धब्बे हो जाते हैं। प्रभावित फल में कुछ पिण्डिकाओं (बड़े भाग में छोटे-छोटे खण्ड़ों का पाया जाना) के आकार के, चंचलित (इधर उधर फैले हुये) धब्बे अलग-अलग खंडकों में पाये जाते है जोकि गूदे में गहराई तक फैल सकते हैं। इनकों भूलस्वरूप फलों में संकेन्द्रित या चमकीली दरारें नहीं समझना चाहिए। यघपि यह विपणन (बाजार में बेचे जाने) योग्य नहीं होते, विकृत फलों में स्वाद बना रहता है और वे सुरक्षापूर्वक खाये जा सकते है। ठंड में पुष्पीकरण के दौरान 12 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान, उच्च नाइट्रोजन स्तर और तृणनाशको से आहत होना इनके सम्भावित कारण हो सकते हैं। अधिक फलों वाली टमाटर की किस्में अधिक संवेदनशील होती हैं।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

इस बीमारी का उपचार केवल रक्षक उपायों(बचाव) द्वारा ही किया जा सकता है।

रासायनिक नियंत्रण

यदि सम्भव हो तो हमेशा रक्षक उपायों और जैविक उपचारों को एक साथ एकीकृत रूप से अपनायें। इस बीमारी का उपचार केवल रक्षक उपायों द्वारा ही किया जा सकता है जोकि लागू करनें में आसान होती है। फिर भी, तृणनाशकों के प्रयोग से बचे जोकि इन दशाओं को उभार सकते हैं विशेषतया संवेदनशील किस्मों में।

यह किससे हुआ

टमाटर में कैटफेस होने के सटीक कारण अनिश्चित है लेकिन सामान्यतया यह अधिक फलों वाली किस्मों में ज़्यादा तेजी से होता है। रात्रि में निम्न तापमान (12 डिग्री सेल्सियस या उससे नीचे) बाद के दिनों में पुष्प की कलियों के विकास में एकजुट होकर दैहिक विकार लाता है, सम्भवतया अपूर्ण परागण के कारण। कुछ किस्में इन बदलते तापमान में अधिक संवेदनशील हो सकती हैं। पुष्प की कलियों के विकास में अन्य अवरोध भी कैटफेस का कारण हो सकते हैं। फूल आने के समय दैहिक विकार, आक्रामकतापूर्ण कटाई अथवा कुछ तृणनाशकों (2, 4- डी) का दिखायी पड़ना भी फलों में विकृति ला सकता है। नाइट्रोजन के असंतुलित प्रयोग के कारण फलों की अत्यधिक बढ़त भी एक कारण हो सकती है। अंत में, कीट (छोटे कीटों की एक किस्म) हानि अथवा टमाटर की पत्तियाँ का छोटा होना भी कैटफेसिंग की ओर ले जाता है।


निवारक उपाय

  • उन किस्मों का प्रयोग करें जो कि तापमान के परिवर्तित होने पर अधिक सहनशील हों।
  • उन तृणनाशकों के प्रयोग से बचें जोकि इन दशाओं को (उत्तरदायी) आगे ले जा सकते है।
  • पुष्प कलियों के विकास के समय इनका नियमित निरीक्षण करें।
  • खेतों में काम के समय पौधों को दैहिक क्षति होने से बचायें।
  • उर्वरण करने से पहले मिट्टी में नाइट्रोजन के स्तरों का पता लगाये।

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