PLS
अन्य
पत्तियों के दैहिक धब्बों के लक्षण फसल के प्रकार, प्रजाति, मौसम तथा प्रबंधन के प्रकार पर निर्भर करते हुए आकार तथा रंग में बहुत अधिक विभिन्नता लिए होते हैं। कुछ अनाजों में पीली चित्तियाँ या नारंगी सुई जैसे छेद वाले धब्बे तथा अन्य में कत्थई या लालिमा लिये हुए कत्थई धब्बे दिखाई देते हैं। कुछ मामलों में धब्बे बढ़ते हैं और पानी से भरे हुए उँगलियों के चिन्ह जैसे धब्बों में बदल जाते हैं। इन लक्षणों को सहजता से कवक के कारण होने वाले धब्बों जैसे कि धूप से जले हुए धब्बे, जाली जैसे धब्बे तथा पत्तियों के सेप्टोरिया जैसे धब्बों के संक्रमण जैसा समझा जाता है। हालाँकि, यदि कारण दैहिक है तो धब्बे पौधे की सभी पतियों पर उपस्थित होते हैं जबकि कवकीय रोग प्रायः निचली छतरी में आरम्भ होता है। अन्य प्रमुख अंतर यह है कि दैहिक घावों में पत्तियों की शिराओं से घिरे हुए तीखे किनारे होते हैं जबकि (कवक के साथ प्रसारित) होते हैं।
अभी तक पत्तियों के दैहिक धब्बों के नियंत्रण का कोई भी जैविक विकल्प उपलब्ध नहीं है। यदि आप कुछ जानते हों तो कृपया हमें सूचित करें।
हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करें जिसमे रोकथाम के उपायों और जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हों, का समावेश होना चाहिए। उन मामलों में जहाँ मिट्टी का पी एच स्तर संतुलित अथवा कम है, कुछ प्रजातियों में पोटाश का के सी एल के रूप में प्रयोग कर इसे सुधारा या वापस दोहराया गया है। उच्च पी एच वाली मिट्टियों में पोटाश की आपूर्ति का सीमित उपयोग पाया गया है।
पत्तियों के दैहिक धब्बे अधिकांशतः शीत ऋतु के गेंहूँ पर दिखाई देता है, लेकिन अन्य अनाज भी प्रभावित होते हैं। यह समझा जाता था कि यह विकृति वातावरण की परिस्थितियों के कारण ऊतकों में आक्सीकरण के कारण होती है, उदाहरण के लिए शीर्ष की पत्तियों में धूप के कारण हुई क्षति या मिट्टी में क्लोराइड की कमी। अन्य प्रभाव, जैसे कि एक के बाद एक आते हुए ठन्डे, बादलों से भरे, आर्द्र मौसम के बाद गर्म, धूप की परिस्थितियों के कारण यह आरम्भ हो सकता है। पत्तियों की सतह के आधार पर पराग तथा पानी के जमाव के कारण भी दैहिक धब्बों का विकास होता है। पत्तियों के दैहिक धब्बों को सहजता से कवक के कारण होने वाले धब्बों जैसे कि धूप से जले हुए धब्बे, जाली जैसे धब्बे तथा पत्तियों के सेप्टोरिया जैसे धब्बों के संक्रमण जैसा समझा जाता है। हालांकि, इन कीटाणुओं के विपरीत, यह माना जाता है कि यह उपज को प्रभावित नहीं करता। अतः इस अंतर को समझ पाना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि धब्बे किसी रोग के कारण हुए हैं अथवा नहीं तथा तभी कवकनाशकों का प्रयोग किया जाना चाहिए या नहीं, तय किया जाए।