Aonidomytilus albus
कीट
कीटडिंभ तने के चारों ओर रस चूसने के लिए इकट्ठा होते हैं और अंततः इसे स्पष्ट रूप से दिखने वाले सफेद रिसाव से ढक देते हैं। किनारे की शाखाएं, पत्तियों के डंठल और पत्तियों की निचली सतह भी कभी-कभी संक्रमित हो सकती है। पत्तियाँ कमज़ोर पड़ जाती हैं, मुरझा जाती हैं और झड़ जाती हैं, तथा गंभीर रूप से प्रभावित पौधे बौने रह जाते हैं। खेतों में रोपण के समय संक्रमित कलमों के चारों ओर संक्रमण दिखाई दे सकता है। कीटडिंभ के अधिक भक्षण से तने सूख जाते हैं और कमज़ोर पड़ जाते हैं, जिसके कारण ये प्रायः हवा से टूट जाते हैं। तनों के टूटने की पूर्ति करने के लिए पौधा नई शाखाएं उत्पन्न करता है, जिसके कारण संक्रमित पौधों में बहुत अधिक शाखाएं निकल आती हैं और यह झाड़ीनुमा दिखने लगता है। ऐसे पौधों में जड़ों का विकास खराब होता है और कंद खाने योग्य नहीं रहते। पहले से कीड़ों और सूखे के आक्रमण से कमज़ोर हुए पौधों पर लक्षण ज़्यादा खराब होते हैं।
रोपण से पूर्व कलमों को कसावा की जड़ों के द्रवीय सत में 60 मिनट डुबोने से ए. एलबस को मारा जा सकता है। गर्म पानी में भी डुबाया जा सकता है किंतु यह कम प्रभावी है। यह भी देखा गया है कि तनों के सीधे खड़े रूप में भंडारण से संक्रमण कम होता है। चिलोकोरस निगरिटस जैसे कुछ कोकिनेलिड शिकारी भी जनसंख्या कम करने में सहायक होते हैं। जैविक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी की उर्वरकता को बढ़ाने या जैविक पदार्थों के समावेश से भी सहायता मिल सकती है।
हमेशा एक समेकित दृष्टिकोण अपनाएं जिसमें निरोधात्मक उपायों के साथ, यदि उपलब्ध हों, तो जैविक उपचारों का भी समावेश हो। निरोधात्मक उपाय के तौर पर, संक्रमण की रोकथाम के लिए तनों पर भंडारण के समय डाईमेथोएट, डायज़ीन, मिथाइल डेमेटोन या मेलेथियोन (मिश्रण के अनुसार 0.01 से 0.05%) के घोल का छिड़काव किया जाना चाहिए या उन्हें मिश्रण में 5 मिनट के लिए डुबोना चाहिए। कलमों को मेलेथियोन, डायज़ीन या डाईमेथोएट वाले द्रवों में रोपण से पूर्व डुबोने से कसावा के शल्क के संक्रमण से बचाव होता है।
लक्षण शल्क कीट, औनीडोमाइटिलस एलबस, के कारण होते हैं। यह पौधों का भक्षण करके उन पर जीवित रहता है और हवा या पशुओं / मनुष्यों के द्वारा प्रसारित होता है। रोपाई के लिए इस्तेमाल कलमों जैसे संक्रमित पौधों की सामग्री के परिवहन से भी रोग का लंबी दूरी तक प्रसार होता है। मादाएं पौधों का भक्षण करती हैं और कलियों के शल्क के नीचे अंडे देती हैं। छोटे कीटडिंभ कुछ दिनों बाद निकल आते हैं और पौधों के अन्य हिस्सों तक रेंग कर पहुंच जाते हैं, जहाँ वे अपने पैर खो देते हैं और निश्चल हो जाते हैं। ये तने के रस को बहुत तेज़ी से चूसते हैं और इसे सूखा देते हैं। वयस्क एक सफेद मोम जैसा रिसाव करते हैं और चांदी जैसे सफेद परत वाले अंडाकार, कौड़ी जैसे शल्क में बदल जाते हैं। नर पंखदार होता है और कम दूरी तक उड़ सकता है, जबकि मादा पंखहीन और निश्चल होती है। तेज़ वर्षा और तेज़ हवाएं रोगाणु को पौधों से हटा सकती हैं। इसके विपरीत, लंबे समय तक शुष्क परिस्थितियाँ पौधों को कीटों के लिए अधिक अनुकूल बनाती हैं और इसके प्रसार के अनुकूल होती हैं।