मैनीक

पत्तियों के भूरे धब्बे

Clarohilum henningsii

फफूंद

संक्षेप में

  • पत्तियों की सतह पर, मुख्य शिराओं से घिरे हुए भूरे उभरे किनारों वाले धूप से जले हुए कोणीय धब्बे या चित्तियाँ।
  • धब्बों के केंद्र शुष्क होकर गिर सकते हैं।
  • कई मामलों में, धब्बों के चारों ओर पीला हरितहीन आभामंडल बन जाता है।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें
मैनीक

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लक्षण

कवक पौधों पर या ज़मीन पर रोगग्रस्त कसावा पत्तियों पर जीवित रहता है। यह नई पत्तियों और पौधों पर हवा या वर्षा के छींटों से प्रसारित होता है। एम. हेनिंगसी पत्तों पर घाव उत्पन्न करता है जो छोटे गोलाकार हरे-पीले रंग के धब्बों से शुरू होते हैं। जैसे-जैसे ये बड़े होते हैं, ये पत्तियों की मुख्य शिराओं पर फैलकर कोणीय धब्बों में बदल जाते हैं। ऊपरी सतह पर, धब्बे विभिन्न आकार के, धूप से झुलसे हुए से लेकर हल्के झुलसे हुए से और गहरे कत्थई, हल्के उभरे हुए किनारे वाले होते हैं। कभी-कभी पत्तियों की छोटी शिराएं धब्बों के आर-पार इस तरह होती हैं कि वे काली परिगलित रेखाओं सी दिखाई देती हैं। समय के साथ, धब्बों का केंद्र सूख जाता है। गंभीर संक्रमण होने पर पत्तियों के धब्बे पीले आभामंडल से घिर जाते हैं जो बढ़ते हुए माइसीलियम से उत्पन्न विषाक्त पदार्थ से बना होता है। अंततः घाव बढ़ कर आपस में मिल जाते हैं और पूरी पत्ती को घेर लेते हैं, जिसके कारण असमय पर्णपात होता है। पत्ती की निचली सतह पर धब्बे सलेटी रंग के होते हैं और कम दिखाई देते हैं।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

इस कवक के प्रसार को नियमित करने के लिए कोई भी जैविक नियंत्रक उपाय उपलब्ध नहीं है। रोग से बचने के लिए, रोगमुक्त रोपण सामग्री का उपयोग और समुचित निरोधात्मक उपायों को अपनाना अत्यंत आवश्यक है। कवक पौधों पर या ज़मीन पर उपस्थित कसावा की रोगग्रस्त पत्तियों में जीवित रहता है। यह नई पत्तियों और पौधों पर हवा या वर्षा की बौछारों से फैलता है।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा एक समेकित दृष्टिकोण अपनाएं, जिसमें निरोधात्मक उपायों के साथ, यदि उपलब्ध हों, तो जैविक उपचारों का भी समावेश हो। कसावा में पत्तियों के भूरे धब्बों को थियोफ़ेनेट (0.20%), क्लोरथेलोनिल वाले कवकनाशकों के छिड़काव से प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता है। कॉपर कवकनाशी, मेटालेक्सिल और मेंकोज़ेब के प्रयोग की भी सलाह दी जाती है।

यह किससे हुआ

लक्षणों का कारण मायकोस्फ़ेरेला हेनिंगसी कवक है जो पौधों पर या भूमि पर पड़े फसल के अवशेषों में उपस्थित कसावा की रोगग्रस्त पत्तियों में में जीवित रहता है। अनुकूल परिस्थितियों में यह नए पौधों में हवा या वर्षा की बौछारों से फैलता है। बीजाणु दरअसल पत्तियों की सतह के नीचे, परिगलित धब्बों के नीचे उत्पन्न होते हैं। उष्ण, आर्द्र मौसम कवक के जीवन चक्र के लिए अनुकूल होता है और यह रोग की तीव्रता बढ़ा देता है। लंबी दूरी में संक्रमण तब फैलता है जब रोगग्रस्त कृषि सामग्री को अन्य खेतों या बागानों में ले जाया जाता है। सामान्यतः, नई पत्तियों की अपेक्षा पुरानी पत्तियाँ रोग के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।


निवारक उपाय

  • रोगमुक्त कलमों को उपयोग करने का ध्यान रखें।
  • यदि आपके इलाके में उपलब्ध हों, तो प्रतिरोधी प्रजातियों को लगाएं।
  • पौधों के मध्य अधिक स्थान रखने का ध्यान रखें जिससे छतरी में अच्छा वायु संचरण हो सके।
  • आर्द्र मौसम के दौरान जल्दी रोपाई करें जिससे संवेदनशील चरण (शुष्क मौसम आने तक 6-8 महीने की अवस्था) में पहुँचने से पहले फसल मज़बूत हो जाए।
  • कसावा की नई फसलों को पुरानी फसलों के समीप न लगाएं क्योंकि इनके रोगग्रस्त होने की अधिक संभावना होती है।
  • कवक को नष्ट करने के लिए शुष्क मौसम में गिरी हुई कसावा की पत्तियों को इकट्ठा कर जला दें।
  • इसके विकल्प के तौर पर संक्रमित पौधों को गहराई में दबा दें या जला दें।
  • हर 3 से 5 वर्ष के अंतराल पर फसल चक्रीकरण का प्रयोग करें जिससे जीवाणु खेत में जीवित न रह सके।
  • कसावा की खेती में प्रयुक्त किसी भी औज़ार की अच्छी स्वच्छता बनाये रखें।

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