सिट्रस (नींबू वंश)

पोटैशियम की कमी

Potassium Deficiency

कमी

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संक्षेप में

  • पत्तियों में पीलापन - किनारों से आरम्भ।
  • मुख्य शिरा गहरी हरी रहती है।
  • मुड़ी हुई पत्तियाँ।
  • अवरुद्ध विकास।

में भी पाया जा सकता है

56 फसलें
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सिट्रस (नींबू वंश)

लक्षण

लक्षण मुख्यतः पहले पुरानी पत्तियों पर दिखाई देते हैं और नई पत्तियों पर सिर्फ़ अत्यधिक कमी होने पर ही दिखाई देते हैं। पोटैशियम की हल्की कमी की विशेषता पत्तियों के किनारों और सिरों पर हल्के पीलेपन के विकास से होती है, जिसमें बाद में सिरों की जलन होती है। पत्तियों के किनारे थोड़े हल्के रंग के हो जाते हैं जबकि मध्यशिरा गहरे हरे रंग की रहती हैं (अंतःशिरा हरित हीनता)। यदि इसे सुधारा न जाये, तो ये हरितहीन धब्बे एक शुष्क, झागदार धूप से जले हुए या गहरे कत्थई रंग के झुलसे हुए (परिगलन) हो जाते हैं, जो आमतौर पर पत्तियों के किनारों से मध्यशिरा की ओर बढ़ता है। हालांकि, मुख्य शिर हरी रहती है। पत्तियाँ मुड़ने लगती हैं और चटकने लगती हैं और प्रायः असमय झड़ जाती हैं। नई पत्तियाँ छोटी और मुरझाई सी रहती हैं, जो एक प्याली के आाकर में बंद सी दिखती हैं। पोटैशियम की कमी वाले पौधे बौने रह जाते हैं और रोगों तथा अन्य तनावों, जैसे कि सूखे और पाले के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। कुछ मामलों में, फलों में बहुत अधिक विकृति भी आ जाती है।

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जैविक नियंत्रण

वर्ष में कम से कम एक बार राख या पौधों की पलवार के रूप में मिट्टी में जैविक पदार्थ डाला जाना चाहिए। लकड़ी की राख में भी पोटैशियम की उच्च मात्रा होती है। अम्लीय मिट्टी में चूना देने से कुछ मिट्टियों में रिसाव रोक कर पोटैशियम धारण करने की क्षमता बढ़ाई जा सकती है।

रासायनिक नियंत्रण

  • पोटैशियम (K) युक्त उर्वरकों का प्रयोग करें।
  • उदाहरण: पोटाश म्यूरियेट (MOP), पोटैशियम नाइट्रेट (KNO3)।
  • अपनी मिट्टी और फसल के लिए सबसे अच्छे उत्पाद और खुराक के बारे में जानने के लिए अपने कृषि सलाहकार से परामर्श करें।

अतिरिक्त सुझाव:

  • अपने फसल उत्पादन को बेहतर करने के लिए फसल के मौसम की शुरुआत से पहले मिट्टी का परीक्षण करने की सलाह दी जाती है।
  • खेत की तैयारी के दौरान और फूल आने पर उर्वरक डालना सबसे अच्छा रहता है।
  • पत्तियों के स्प्रे की तुलना में मिट्टी में उर्वरक डालने से पौधे पोटैशियम को अधिक कुशलता से अवशोषित कर पाते हैं।

यह किससे हुआ

कमी मिट्टी में पोटैशियम की कम मात्रा या पौधे को सीमित आपूर्ति के कारण हो सकती हैं। कम पीएच वाली मिट्टी और कम जैविक पदार्थ वाली बलुही या हल्की मिट्टी पोषक तत्वों के रिसाव और सूखे के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं और इसलिए समस्याकारक हो सकती हैं। अधिक सिंचाई और ज़्यादा वर्षा जड़ों के स्थान से पोषक तत्वों को धो देती हैं और कमी पैदा कर सकती हैं। गर्म तापमान या सूखे की परिस्थितियाँ पौधों में पानी और पोषक तत्वों के परिवहन को बाधित करती हैं। फ़ॉस्फ़ोरस, मैग्नीशियम और लौह के उच्च स्तर भी पोटैशियम से स्पर्धा कर सकते हैं। पोटैशियम पानी के परिवहन, ऊतकों की मज़बूती और पर्यावरण में गैसों के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पोटैशियम की कमी के लक्षण सुधारे नहीं जा सकते हैं, चाहे बाद में पौधों को पोटैशियम की आपूर्ति कर दी गई हो।


निवारक उपाय

  • प्रायः अत्यधिक अम्लीय या क्षारीय मिट्टी के कारण तत्वों की बड़ी या छोटी कमियाँ हो जाती हैं।
  • मिट्टी का पीएच जाँचें और आदर्श स्तर पाने के लिए यदि आवश्यक हो तो चूने का प्रयोग करें।
  • उन प्रजातियों की खेती करें जो पोटैशियम के ग्रहण में कुशल हों।
  • पौधों में पोषक तत्वों की उचित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए उर्वरकों का संतुलित प्रयोग सुनिश्चित करें।
  • खाद या पौधों की पलवार के रूप में मिट्टी में जैविक तत्व मिलाएं।
  • पौधों को नियमित पानी दें और खेतों में पानी भरने से बचें।

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