Melanagromyza obtusa
कीट
लक्षण तब तक स्पष्ट नहीं होते हैं जब तक कि पूर्ण रूप से विकसित लार्वा फलियों के छिलके खाकर उनमें छेद नहीं कर देते हैं। इन्हीं छेदों में से होकर प्यूपीकरण के बाद मक्खियां बाहर निकलती हैं। प्यूपा दानों में छेद करके घुस जाते हैं, इससे सुरंगें बनती हैं और इन्हीं सुरंगों से वे वयस्क के रूप में बाहर निकलते हैं। प्रभावित दाने सिकुड़ जाते हैं और उनकी जीवनशक्ति समाप्त हो जाती है। लार्वा के मल के कारण पौधे के संक्रमित हिस्सों में फफूंद विकसित हो सकता है। क्षतिग्रस्त बीज मानव सेवन के लिए अनुपयुक्त हो जाते हैं और वे अंकुरण में भी अक्षम होते हैं। सूखी फलियों पर पिन के आकार के छेद पाए जा सकते हैं। बीज सिकुड़े हुए, धारीदार और आंशिक रूप से खाए हुए दिखते हैं।
एम. ऑब्ट्यूसा के प्राकृतिक शत्रुओं का संरक्षण करें। चार सप्ताह के लिए नीम की निबौरियों (50 ग्रा./लीटर पानी) का अर्क डालें या हर पखवाड़े नीम की गिरी के गीले अर्क का छिड़काव करें।
रोकथाम उपायों के साथ-साथ उपलब्ध जैविक उपचारों को लेकर हमेशा एक समेकित कार्यविधि पर विचार करें। मोनोक्रोटोफ़ोस, एसिफ़ेट या लैंब्डा-सायहेलोथ्रिन का फूल आने पर छिड़काव करें और फिर 10-15 दिन बाद दोहराएं। किसी विशिष्ट कीटनाशक के प्रति प्रतिरोध विकिसित होने से रोकने के लिए मौसम में कीटनाशक बदल-बदल कर छिड़काव करने की सलाह दी जाती है।
क्षति का कारण मेलानाग्रोमाइज़ा ऑब्ट्यूसा की सुंडी है जो विकसित हो रहे दानों की दीवारों को खाती है। वयस्क मक्खियां अरहर की कच्ची फलियों और अन्य मेज़बान पौधों की दीवारों में अंडे देती हैं। अंडों से बाहर निकले लार्वा दूधिया सफ़ेद होते हैं जबकि प्यूपा नारंगी-भूरे होते हैं। सुंडियां बीज की अधिचर्म के ठीक नीचे बिना बीज आवरण को नुकसान पहुंचाए सुरंग बनाता है। बाद में ये छेद करके बीज पत्रों में घुस जाते हैं। अंतिम अवस्था वाली सुंडी बीज को छोड़ देती है और प्यूपीकरण से पहले फली में छेद बना देती है।