Euchrysops cnejus
कीट
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लक्षण कलियों, फूलों और बीज फलियों पर खाए जाने और भीतर प्रवेश करने से बने छेदों के रूप में स्पष्ट दिखते हैं। फली क्षति की विशेषता प्रत्येक फली पर कई छेद दिखना है। इन छेदों से रस निकलता रहता है और इनके किनारे काले पड़ जाते हैं।
नीली तितली की आबादी पर नियंत्रण के लिए सभी लेपिडॉप्टेरा कीटों पर हमला करने वाले प्राकृतिक शत्रुओं का प्रयोग करें। साप्ताहिक अंतराल पर कीट परजीवी ट्राईकोग्रामा प्रजाति को 0.6 लाख/एकड़/सप्ताह की दर से चार बार डालें। टेलोनॉमस प्रजाति (अंडे का परजीवी) और एप्नाटेलेस प्रजाति (लार्वा का परजीवी) के दिखने पर कीटनाशकों का प्रयोग न करके इन्हें संरक्षित करें। अन्य सुंडियों को निशाना बनाने वाले कीटनाशकों से लार्वा पर नियंत्रण किया जा सकता है। अपने पौधों को बैसिलस थुरिंजिएंसिस (100 लीटर/हेक्टेयर) से अच्छी तरह ढकें। नीम का तेल भी कीट पर नियंत्रण रख सकता है।
रोकथाम उपायों के साथ-साथ उपलब्ध जैविक उपचारों को लेकर हमेशा एक समेकित कार्यविधि पर विचार करें। घास वाली नीली तितली के विरुद्ध कोई विशिष्ट कीटनाशक उपलब्ध नहीं है। लेपिडॉप्टेरा की अन्य प्रजातियों को लक्षित करने वाले अधिकांश उत्पाद इस कीट को भी नियंत्रित करेंगे। यह सुझाया जाता है कि प्रोफ़ेनोफ़ॉस ई. नेजस को बहुत प्रभावी रूप से नियंत्रित करता है।
लक्षणों का कारण मुख्य रूप से यूक्राइसॉप्स नेजस का लार्वा है। वयस्क नर हल्का बैंगनी होता है, जबकि मादा काफ़ी हद तक काली राख जैसी होती है और इसके पंखों के आधार चमकदार हल्के नीले रंग के होते हैं। मादा अपने जीवन चक्र में 60 से 200 अंडे दे सकती है और उन्हें एक-एक करके प्ररोहों, कलियों और पत्तियों पर छोड़ती जाती है। लार्वा विशेष रूप से मोटा, चपटा, हल्का हरा या पीला और करीब 13 मिमी. लंबा होता है। इसके शरीर पर एक लाल रेखा और छोटे काले बाल होते हैं। अक्सर काली चींटियां इनकी देखरेख करती हैं। अपने रंग और भक्षण स्थान के कारण सुंडी दिनचर (दिन में सक्रिय) होने के बाद भी बमुश्किल नज़र आती है। लार्वा विशेष तौर पर दलहन फसलों के फूलों और नई फलियों को खाता है और उनमें छेद करता है। प्यूपीकरण पत्तियों पर होता है।