सेम

सेम की मक्खी (बीन फ्लाई)

Ophiomyia phaseoli

कीट

संक्षेप में

  • क्षति का कारण लार्वा और वयस्क दोनों ही होते हैं और क्षति सूखे मौसम में तरुण पौधों में सर्वाधिक होती है।
  • पौधे पर धब्बेदार पत्तियां और पत्ती के ठंडल पर चांदी के रंग जैसी घुमावदार धारियां होती हैं जो बाद में गहरी भूरी पड़ जाती हैं।
  • प्रकोपित पत्तियां सूखने के बाद झड़ सकती हैं।

में भी पाया जा सकता है


सेम

लक्षण

नई पत्तियों पर बड़ी संख्या में सुराख और ऊपरी सतह पर हल्के पीले रंग के धब्बे दिखते हैं, विशेषकर पत्ती के नीचे की ओर। लार्वा पत्तियों के ठंडल और तनों में सुरंग बनाते हैं जो बाद में चांदी जैसी घुमावदार धारियों के रूप में दिखती हैं। पत्ती की ऊपरी सतह पर केवल कुछ सुरंगें दिखती हैं जो कि बाद में गहरी भूरी पड़ जाती हैं और पत्तियां मुरझाने पर स्पष्ट रूप से दिखती हैं। ये पत्तियां सूख या फिर झड़ तक सकती हैं। प्रकोपित वयस्क पौधों में ठंडल फूल जाते हैं और कभी-कभी पत्तियां मुरझा सकती हैं। भक्षण करने से बनी सुरंगें तनों पर स्पष्ट नज़र आती हैं। लार्वा द्वारा गहन भक्षण के कारण जड़-प्ररोह संधि स्थल के चारों ओर आंतरिक ऊतक नष्ट हो जाते हैं। इस कारण पत्तियां पीली पड़ जाती हैं, पौधों की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है और यहां तक कि पौधे की मृत्यु हो जाती है। अधिकांश मामलों में पौधा उगने के 10-15 दिन के अंदर मर जाता है।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

सेम की मक्खी के कई प्राकृतिक शत्रु हैं। ओपियस प्रजाति की कई ब्रेकोनिड ततैया के लार्वा कीट-परजीवी का दोनों एशिया और अफ्रीका में व्यापक उपयोग किया जाता है। दो प्रजातियां ओपियस फेसिओली (Opius phaseoli) और ओपियस इंपोर्टैटस (Opius importatus) को 1969 में पूर्वी अफ्रीका से हवाई द्वीप में छोड़ा गया था हालांकि कभी-कभार सेम की मक्खी का प्रकोप आज भी फैलता है। कुछ क्षेत्रों में कीट मृत्यु दर 90% तक पहुंच जाती है। वैसे, फफूंद रोगाणुओं पर अाधारित उत्पादों का संभावित कीट प्रबंधन साधन के रूप में पूर्वी अफ्रीका में परीक्षण किया जा चुका है।

रासायनिक नियंत्रण

निवारक उपायों के साथ-साथ जैविक उपचारों, यदि उपलब्ध हैं, पर हमेशा एक समेकित नज़रिये से विचार करना चाहिए। जहां प्रकोप गंभीर है, वहां सेम की मक्खी पर नियंत्रण के लिए कीटनाशकों पर विचार किया जा सकता है। हालांकि क्षति पहुंचाने वाले लार्वा पौधे के अंदर सुरक्षित रहते हैं। फसल बुवाई के साथ-साथ या अंकुरण के तुरंत बाद मिट्टी में इमिडैक्लोप्रिड युक्त रासायनिक उत्पादों का छिड़काव प्रभावी रहता है। नवांकुरों को अंकुर फूटने के 3-4 दिन बाद उपचारित किया जाता है और यदि सेम की मक्खी का प्रकोप गंभीर है तो 7 दिन और संभवतः 14 दिन के अंतराल पर दोहराया जाता है। अन्य आम तौर पर उपयोग किए जाने वाले सक्रिय तत्व हैं डाइमेथोएट (सिस्टैमिक), संपर्क कीटनाशक और मेथोमिल। सभी सूचीबद्ध रसायन खतरनाक हैं और इनका सावधानीपूर्वक उपयोग किया जाना चाहिए।

यह किससे हुआ

लक्षणों का कारण सेम की मक्खी, ओफियोमाइया फेसिओली (Ophiomyia phaseoli) के लार्वा और वयस्क हैं। ये दुनिया का एक सबसे विनाशकारी कीट है। यह एशिया, अफ्रीका, हवाई और ओसीनिया के गर्म और अर्धगर्म क्षेत्रों में व्यापक है। कुछ मामलों में इसके कारण 30-50% उपज हानि हो सकती है। क्षति की तीव्रता मौसमी प्रतीत होती है जिसके कारण सूखे मौसम की तुलना में बारिश के मौसम (क्रमशः 80% की तुलना में 13% ) में मृत्यु दर बहुत ज्यादा होती है। वयस्क और लार्वा दोनों क्षति पहुंचाते हैं, विशेषकर नवांकुरों में। वयस्क नई पत्तियों में छेद करते हैं और पत्ती के ठंडल के पास अपने सफेद, अंडाकार अंडे देते हैं। विकसित हो रहा लार्वा तने में सुरंग बनाते हुए नीचे की ओर जाता है और फिर प्यूपीकरण के लिए तने के आधार पर, मिट्टी की सतह के पास लौट आता है। तापमान पर निर्भर करते हुए प्यूपीकरण 10-12 दिन तक होता है।


निवारक उपाय

  • यदि उपलब्ध हैं तो प्रतिरोधी किस्में रोपित करें।
  • बारिश के मौसम में पौधे रोपित करें।
  • रोपण से पहले अवांछित पौधे और खरपतवार हटा दें, विशेषकर दलहन परिवार के पौधे।
  • सेम को समान प्रकार की प्रौढ़ फसलों या उसी परिवार की अन्य फसलों के साथ रोपित न करें।
  • पौधों के बीच ज्यादा से ज्यादा स्थान छोड़ें।
  • आरंभिक वृद्धि के दौरान (अंकुरण के 2-3 सप्ताह बाद) जड़ों को पलवार जैसे कि केले के पत्तों, धान की भूसी या घास से ढक दें।
  • अंकुरण के बाद चार से पांच सप्ताह के दौरान क्षति की निगरानी करें और कीट पर नियंत्रण रखें।
  • फसल कटाई के बाद फसल अवशेष गहरे दबा या जला दें।

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