Aonidiella aurantii
कीट
पत्तियों (प्रायः मुख्य शिरा के साथ), टहनियों, शाखाओं और फलों पर असंख्य, सूक्ष्म, गहरे कत्थई से लाल रंग के शल्क पाए जाते हैं। ये उभरे हुए, स्पष्ट से केंद्र वाले (ज्वालामुखी जैसी आकृति) शंकु आकार के धब्बों से दिखते हैं। जिस स्थान पर ये भक्षण करते हैं, वहाँ पर एक पीला आभामंडल देखा जा सकता है। संक्रमण अधिक होने पर पत्तियाँ मुरझा जाती हैं, समय से पूर्व गिर जाती है और पर्णपात हो जाता है। संक्रमित टहनियाँ अपने स्थान पर मर जाती हैं और अधिक संक्रमण होने पर ऐसा बड़ी शाखाओं में भी हो सकता है। फल असंख्य शल्कों द्वारा पपड़ी की तरह ढक दिए जा सकते हैं और विकृत रूप में बढ़ते हैं, जिसके कारण वे अंत मे सूख जाते हैं और पेड़ से झड़ जाते हैं। छोटे पौधे बुरी तरह बाधित हो बौने रह जाते हैं और यदि कई शाखाएं मर जाएं तो मर भी सकते हैं। लाल शल्क मधुरस भी उत्सर्जित करते हैं और इस के कारण पत्तियों और फलों पर मैली फफूँदी भी बन सकती है।
ओनिडिएला औरंटी के प्राकृतिक शत्रुओं में परजीवी कीट एफ़ाइटिस मेलिनस तथा कॉम्पेरिएला बाईफ़ेसिएटा तथा शिकारी घुन हेमिसारकोप्ट्स मेलस हैं, जो रेंगने वाले कीटों पर आक्रमण करते हैं। लाल शल्कों पर जैविक रूप से नियंत्रण पाने के लिए चींटियों पर नियंत्रण महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये शल्कों को प्राकृतिक शत्रुओं से बचाती हैं। पत्तियों और फलों से शल्कों को हटाने के लिए जैविक रूप से स्वीकृत पेट्रोलियम तेल छिड़काव का भी प्रयोग किया जा सकता है। फसल कटने के बाद अपने फलों से शल्कों को हटाने के लिए पानी के तेज़ धार से धुलाई करें।
हमेशा निरोधात्मक उपायों के साथ जैविक नियंत्रक, यदि उपलब्ध हों, के समन्वित उपयोग पर विचार करें। कम फैलाव के तेलों से छिड़काव प्राकृतिक शत्रुओं को न्यूनतम नुकसान पहुंचाता है और ग्रीष्म के मध्य में इनका उपयोग सर्वश्रेष्ठ होता है। जब 25% फल संक्रमित हों, तब सुधारात्मक रासायनिक छिड़काव का उपयोग करना चाहिए। क्लोरपायरिफ़ॉस, कार्बारायल, मैलाथियोन या डाईमेथोटेट पर आधारित कीटनाशकों का बागानों के चुनिंदा हिस्सों में, जहां कीटों की संख्या अधिक हो, किया जाना चाहिए। व्यापक प्रभाव वाले कीटनाशकों के प्रयोग से बचना चाहिए जो लाभप्रद कीटों को हानि पहुँचा सकते हैं।
लक्षणों का कारण लाल शल्क, ओनिडिएला औरंटी की भक्षण की क्रिया है। यह विश्व भर, विशेषतः कटिबन्धी क्षेत्रों में साइट्रस का प्रमुख कीट है। ये फसल कटने के बाद लकड़ी और पत्तियों में जीवित रह अगले मौसम की नई बढ़वार को संक्रमित करते हैं। अपने चलायमान चरण में, मादाएं भक्षण के लिए स्थान खोजने के लिए प्रकाश की ओर बहुत अधिक आकर्षित होती हैं। वे अंडे नहीं देती बल्कि बहुत सक्रिय रेंगने वाले जीवों को जन्म देती हैं। एक बार किसी पत्ती की ऊपरी सतह या छोटे फलों के गड्डों में स्थापित होने के बाद ये स्थिर हो जाते हैं। रुई जैसे पदार्थ से ढके हुए होने की एक छोटी-सी अवस्था के बाद, वे अंततः अपना गोल चपटा आकार और विशिष्ट लालिमा लिए हुए कत्थई रंग प्राप्त कर लेते हैं। इनका जीवनचक्र तापमान तथा पेड़ के स्वास्थ्य से निकटता सम्बंधित होता है। अतः, सर्वाधिक क्षति गर्मी के अंत मे होती है जब पेड़ आर्द्रता के तनाव से जूझ रहे होते हैं।