सोयाबीन

सोयाबीन का चक्र भृंग (गर्डल बीटल)

Obereopsis brevis

कीट

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संक्षेप में

  • शाखा या तने पर दो वृत्ताकार कटाव।
  • पत्तियों का नीचे की ओर लटक जाना और सूखना।
  • तरुण पौधों का मुरझाना और मृत्यु।
  • भृंग का सिर और धड़ पीले-लाल रंग का जबकि पंख आवरण भूरा होता है।
  • लार्वा गहरे काले सिर वाले और सफ़ेद होते हैं।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें

सोयाबीन

लक्षण

दिखाई देने वाले लक्षणों को नवांकुर अवस्था में देखा जा सकता है। इसकी विशेषता पौधे की शाखा और तने पर दो वृत्ताकार कटाव होते हैं। नवांकुर और तरुण पौधे मुरझा जाते हैं या मर जाते हैं, जबकि ज़्यादा बड़े पौधों की पत्तियां केवल मुरझाई हुई होती हैं या भूरी पड़ जाती हैं या फिर सभी पत्तियां सूख जाती हैं। प्रभावित शाखाओं पर वृत्ताकार छल्ले दिखाई देते हैं। कटाव के ऊपर के प्रकोपित हिस्से अंततः मर जाते हैं। प्रकोप की बाद की अवस्था में पौधा ज़मीन के 15-25 मीटर ऊपर से टूटकर अलग हो जाता है।

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जैविक नियंत्रण

आज तक कोई प्रभावी जैविक उपचार उपलब्ध नहीं है। सोयाबीन चक्र भृंग पर नियंत्रण के वैकल्पिक उपाय निवारक उपायों और खेतीबाड़ी तौर-तरीकों तक सीमित हैं।

रासायनिक नियंत्रण

रोकथाम उपायों के साथ-साथ उपलब्ध जैविक उपचारों को लेकर हमेशा एक समेकित कार्यविधि पर विचार करें। यदि नुकसान 5% आर्थिक सीमा से अधिक है, तो चक्र भृंग को अंडे देने से रोकने के लिए आप एनएसकेई 5% या एज़ाडिरैक्टिन 10000 पीपीएम का 1 मिली/लीटर पानी के दर से इस्तेमाल कर सकते हैं। कार्टैप हाइड्रोक्लोराइड दानेदार 4 किग्रा/एकड़ का छिड़काव बुवाई के समय किया जा सकता है। यदि संक्रमण दिखाई दे, तो लैंब्डा-सायहेलोथ्रिन 5 ईसी का 10 मिली प्रति लीटर पानी या डाईमेथोएट 25 ईसी का 2 मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव बुवाई के 30-35 दिन बाद करें और पहले छिड़काव के 15-20 दिन बाद प्रक्रिया दोहराएं। वानस्पतिक चरण या फूल आने पर क्लोरैंट्रेनिलिप्रॉल 18.5% एससी का 150 मिली/हेक्टेयर के दर से, प्रोफ़ेनोफ़ोस और ट्राईज़ोफ़ोस का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

यह किससे हुआ

लक्षणों का कारण मुख्य रूप से ओबेरोप्सिस ब्रेविस का सफ़ेद, मुलायम शरीर और गहरे रंग के सिर वाला लार्वा है। वयस्क भृंग की विशेषता इसका पीला-लाल सिर और धड़ और भूरे रंग के पंख आवरण होते हैं। मादाएं चक्रों के बीच में अंडे देती हैं। लार्वा छेद करके तनों में घुस जाता है और उसे अंदर से खाता है, जिससे तने में एक सुरंग बन जाती है। कटाव से ऊपर का प्रकोपित हिस्सा पर्याप्त पोषक तत्व नहीं प्राप्त कर पाता है और सूख जाता है। इसके कारण गंभीर उपज हानि होती है। 24-31 डिग्री सेल्सियस तापमान और उच्च सापेक्षिक आर्द्रता भृंग के लिए आदर्श जलवायु परिस्थितियां हैं।


निवारक उपाय

  • सहनशील किस्में जैसे कि एनआरसी-12 या एनआरसी-7 का इस्तेमाल करें।
  • सही समय पर (मानसून शुरु होने पर) बुवाई करते हुए बीजों का एक समान वितरण करें।
  • नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों के अत्यधिक इस्तेमाल से बचें।
  • कम से कम प्रत्येक 10 दिन में प्रकोपित पौधा अवशेषों को एकत्र करके नष्ट कर दें।
  • फसल कटाई के बाद फसल अवशेष नष्ट कर दें।
  • फसल चक्रीकरण की अनुशंसा की जाती है, लेकिन मक्का या ज्वार के साथ फ़सल लगाने से परहेज़ करें।
  • गर्मियों के महीनों में गहरी जुताई करके मिट्टी को अगले मौसम के लिए तैयार करें।
  • धैंचा का जाल फ़सल के रूप में कीट को आकर्षित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

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