Chilo suppressalis
कीट
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पौध (अक्सर पौधशाला में ही) में हमला होने पर नई पत्तियां मुरझा जाती हैं और बढ़वार वाले हिस्से मर जाते हैं। इस लक्षण को “डेड हार्ट” कहते हैं। बड़े पौधों में तरुण लार्वा पत्तियों, ख़ासकर पत्ती आवरण में छोटे-छोटे छेद बनाते हैं। वयस्क लार्वा पर्वों (इंटरनोड्स) के आधार पर छेद करते हैं और पौधे के अंदर घुसकर संवहनी ऊतकों को खा जाते हैं। कभी-कभी उन्हें पूरी तरह खोखला कर देते हैं। ये पौधे कम विकसित होते हैं और इनकी पत्तियों का हरा रंग उड़ा हुआ होता है। ये पत्तियां बाद में सूखकर सिकुड़ जाती हैं और अंत में गिर जाती हैं। बालियों में दाने नहीं भरते, इस स्थिति को “व्हाइट हेड” या बालियों का सफ़ेद पड़ना कहते हैं। एक लार्वा कई पौधों को नुकसान पहुंचा सकता है और भयंकर प्रकोप होने पर फ़सल का 100% नुकसान हो सकता है।
कुछ देशों में कीट-परजीवी ततैया पैराथेरेसिया क्लैरिपैल्पिस और एरिबोरस सिनिकस को छोड़ना आबादी और नुकसान कम करने का असरदार तरीका है। शिकारियों में मकड़ियों की कुछ प्रजातियां शामिल हैं।
हमेशा एक समेकित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ उपलब्ध जैविक उपचारों का इस्तेमाल करें। अगर कीटनाशकों की ज़रूरत पड़े तो क्लोरैंट्रैनिलिप्रॉल युक्त उत्पादों का छिड़काव करें। रोपण और बढ़वार के दौरान कीटनाशकों के दानों का इस्तेमाल संक्रमण कम करता है। कीट का शुरुआती लक्षणों के दौरान पता लगा लें नहीं तो फ़सल को बचाने का कोई फ़ायदा शेष नहीं रहता।
लक्षणों का कारण एशियाई तना छेदक चिलो सप्रेसैलिस है। यह मुख्य रूप से दक्षिण एशिया में पाया जाता है और आम तौर पर एक वर्ष में इसकी दो पीढ़ियां होती हैं। सूड़ियां (कैटरपिलर) अधिकतर अंदरूनी ऊतकों को खाती हैं जबकि वयस्क बाहर से रस चूसते हैं। धान के अलावा यह ज्वार और जंगली घासों की कुछ प्रजातियों पर भी हमला कर सकता है। लार्वा ठूंठों और भूसे में सर्दियोँ में जीवित रहता है और हल्का पाला सहन कर सकता है। मादाएं पत्तियों की निचली सतह पर कई समूहों में आम तौर मध्यशिरा के पास 300 तक अंडे देती हैं । अंडों से बाहर निकलने के बाद लार्वा पत्ती की अधिचर्म खाना शुरू कर देता है और बाद में पत्ती आवरण में सुरंग बनाता है जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और बाद में मर जाती हैं। जब ये तने तक पहुंचते हैं तो इसे खोखला कर देते हैं। एक के बाद एक गांठ में छेद करते हुए ये एक बार में एक हिस्सा (इंटरनोड) खोखला करते हैं। पौधे में सिलिका की अधिक मात्रा लार्वा के खाने और छेद करने में बाधा डालती है।