Sogatella furcifera
कीट
नवजात और वयस्क दोनों पौधों के आधार पर या ऊपरी हिस्सों पर पाए जाते हैं। ये पोषवाह (फ्लोयम) रस भक्षी हैं और ऊतकों को क्षति पहुंचाते हैं, जिससे पानी और पोषक तत्वों की हानि होती है, पत्तियां मुरझा जाती हैं, और पौधे का विकास रुक जाता है। अधिक आबादी से झुलसन हो जाती है, यानी पत्तियां नोक से शुरू होकर मध्य-शिरा की तरफ़ धीरे-धीरे नारंगी-पीली होती जाती हैं, और फिर सूखकर मर जाती हैं, जिसे अंग्रेज़ी में हॉपरबर्न कहा जाता है। पौधे छोटे रह जाते हैं, कम किल्ले निकलते हैं और इनकी लटक जाने की संभावना बढ़ जाती है। ये बाली पर भी हमला कर सकते हैं जिससे बालियां भूरी पड़ जाती हैं, गहरे कत्थई या काले चटके हुए दानों के साथ दाना पैदावार घट जाती है।
कुदरती रूप से पाए जाने वाले जैविक नियंत्रक एजेंट आम तौर पर एस. फ़ुर्सिफ़ेरा की आबादी को कम रखने में मदद करते हैं। शिकारियों में अंडों पर हमला करने वाले मिरिड बग सिर्टोराइनस लिविडिपेनिस और वंश एनाग्रस की कुछ फ़ेयरीफ्लाइज़ (ए. फ़्लेवियोलस, ए. परफ़ोरेटर, ए. ऑप्टैबिलिस और ए. फ़्रिक्वेंस) शामिल हैं। कई शिकारी मकड़ियां भी इस कीट पर हमला करती हैं जैसे कि लाइकोसा स्युडोएनुलेटा। अंत में, फफूंद रोगाणु इरिनिया डेलफ़ेसिस भी कीट की आबादी कम करने में मददगार हो सकता है।
हमेशा एक समन्वित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ उपलब्ध जैविक उपचारों का इस्तेमाल करें। नियंत्रण के लिए कीटनाशकों का बेतहाशा इस्तेमाल किया गया है, जिससे प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है। प्रभावी उपचार के लिए ऑक्सेमाइल, कुछ पाइरेथ्रॉयड, बुप्रोफ़ेज़िन, और पाइमेट्रोज़िन का बदल-बदलकर इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
क्षति का कारण सफ़ेद पीठ वाला फुदका, सोगेटेला फ़ुर्सीफ़ेरा, है। वयस्क लगभग 3 मिमी लंबे, हल्के भूरे से काले रंग के होते हैं। अगले पंख पारदर्शी होते हैं और उनकी नोक पर विशिष्ट गहरा भूरा निशान होता है। कीट उच्च उपज वाली क़िस्मों पर हमला करना पसंद करता है। इसकी अधिक प्रजनन क्षमता और इसकी प्रवासी आदतें इसे पूर्वी-एशिया और ऑस्ट्रेलिया में धान का मुख्य कीट बनाती हैं। यह निरंतर ढंग से विषाणु भी प्रसारित करता है, उदाहरण के रूप में, राइस ब्लैक स्ट्रीक्ड ड्वार्फ़ वायरस और सदर्न राइस ब्लैक-स्ट्रीक्ड ड्वार्फ़ वायरस। रोपण का समय, नाइट्रोजन से भरपूर उर्वरकों का अत्याधिक इस्तेमाल, और सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता इसकी आबादी पर बड़ा प्रभाव डालते हैं। पर्यावरणीय कारक जैसे कि तापमान, नमी या वर्षा इसके जीवन चक्र में अहम भूमिका निभाते हैं।