Colaspis hypochlora
कीट
वयस्क भौंरे विभिन्न खर-पतवारों के साथ-साथ केले की नई बंद पत्तियों, तनों तथा जड़ों पर पलते हैं। वे नए फलों को भी खाते हैं जिससे उनके छिलके पर दाग़-धब्बे बन जाते हैं जिसके कारण वे विकृत हो जाते हैं तथा बाजार में बिकने योग्य नहीं रहते। सबसे अधिक दाग़ फलों के आधार के समीप होते हैं जिससे यह जाहिर होता है कि कीट खाने के लिए सबसे छायादार स्थान चुनते हैं (उदाहरण के लिए सहपत्रों के नीचे)। दाग़ अधिकतर अंडाकार होते हैं तथा उन्हें फलों पर दाग़ बनाने वाली मक्खी मेलिपोना एमल्थी जैसा समझा जा सकता है। अवसरवादी जीवाणुओं की ऊतकों में बसावट से क्षति और भी बढ़ जाती है। लार्वा नई जड़ों को खाते हैं तथा पुरानी जड़ों में सुरंग बना कर उनके ऊतकों को खाते हैं। बरसात में इस कीट का प्रकोप अधिक होता है।
आज तक इस कीट के विरुद्ध कोई जैविक उपचार उपलब्ध नहीं है। इसका प्रसार रोकने के लिए सर्वश्रेष्ठ निवारक उपाय खर-पतवार को अच्छी तरह हटाना ही है।
हमेशा एक समेकित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ-साथ उपलब्ध जैविक उपचारों को अपनाएं। रासायनिक नियंत्रण की सलाह नहीं दी जाती है क्योंकि अच्छी तरह से खर-पतवार हटाने (उदाहरण के लिए) आबादी में पर्याप्त कमी लाई जा सकती है तथा कीटनाशकों का उपयोग नहीं करना पड़ता है। गंभीर प्रकोप के दौरान कीटनाशक फॉर्मूलेशन (0,1%) नियमित तौर पर छिड़काया जा सकता है। हालांकि, जब तक बीटल गंभीर आर्थिक नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, तब तक कीटनाशकों के उपयोग से बचा जाना चाहिए।
क्षति का कारण केले के फल पर दाग़ बनाने वाला भौंरा कोलास्पिस हाइपोक्लोरा है। वयस्कों में कत्थई रंग के सामने के पंख होते हैं जिनकी विशेषता छोटे सामानांतर बिन्दुओं की कतार होती है। ये बहुत अच्छा उड़ते हैं। मादाएं 5 से लेकर 45 तक की संख्या में एक-एक करके या समूह में हलके नींबू जैसे पीले रंग के अंडे देतीं हैं। पत्तियों के शीर्ष के समीप किनारे पर चबाने से बनी हुई दरारों या प्राकृतिक गड्ढों जिनसे जडें दिखने लगतीं हैं, में अंडे दिए जाते हैं। 7 से 9 दिन बाद नया निकला हुआ लार्वा नई जड़ों को या पुरानी जड़ों के कोमल ऊतकों में सुरंग करके उन्हें खाने लगता है। इनका शरीर सफ़ेद सा, पतला तथा रोएंदार होता है, सिर कुछ भूरे पीले रंग का होता है। प्यूपा मटमैले पीले रंग का होता है जो वयस्क के निकलने के लिए तैयार होने के समय तक गहरे रंग का होता जाता है।