Diabrotica spp.
कीट
वयस्क मुख्य रूप से पत्तियों और फूलों को खाते हैं, जिससे परागण और अनाज/फली/फल के विकास में बाधा उत्पन्न होती है। लार्वा, जड़ो के बाल, जड़ों और तनों को खाते हैं, जिसके कारण पौधे की मिट्टी से पानी और पोषक तत्वों को अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है। जड़ों की नोकों को पौधे के आधार तक चबाया जा सकता है अथवा वे भूरे दिखाई दे सकते हैं और उनमें सुरंगें दिखाई दे सकती हैं। लक्षण सूखे या पोषक तत्वों की कमी के रूप में दिखाई देते हैं। पौधों के विकास के बाद के चरणों में, जड़ में होने वाले नुकसान के कारण डंठल कमज़ोर हो सकती है और पौधों के लटकने की वजह से कटाई की समस्याएं पैदा हो सकती है। लार्वा से क्षति अवसरवादी रोगजनकों के लिए भी अनकूल होती है। इसके अलावा, डायब्रोटिका की कुछ प्रजातियां मक्का क्लोरोटिक मोटल वायरस (मकई की हरित हीनता और धब्बे पैदा करने वाला विषाणु) और बैक्टीरिया की रोगवाहक होती हैं, जो जीवाण्विक कारणों से मुरझाना उत्पन्न करती हैं। इससे उपज का अत्यधिक नुकसान हो सकता है।
सूत्रकृमि की अनेक प्रजातियों, शिकारियों (घुन, कीड़े) और परजीवी मक्खियों और ततैयों का प्रयोग कीटों की जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, टैकिनिड मक्खी, सेलेटोरिया डायब्रोटिका, को खेत में तब डाला जा सकता है जब ककड़ी के गुबरैले की आबादी बहुत अधिक नहीं हो। कवक ब्यूवेरिया बासियाना और मेटारहिज़ियम एनिसोप्ले भी प्राकृतिक रूप से डायब्रोटिका की कुछ प्रजातियों पर हमला करती हैं।
यदि उपलब्ध हों, तो जैविक उपचार के साथ-साथ निवारक उपायों की एकीकृत पद्धिति पर सदैव विचार करें। ककड़ी के गुबरैले की नुकसान पहुंचाने वाली आबादी के लिए प्राय: कीटनाशकों से उपचार किया जाता है। एसिटामिप्रिड या फ़ेन्ड्रोपेथ्रिन के समूह के कीटनाशकों का प्रयोग केवल तब ही किया जाना चाहिए जब गुबरैले बड़ी संख्या में हों, लेकिन पर्यावरण संबंधी मुद्दों को ध्यान में रखें। पायरेथ्रोइड से मिट्टी का उपचार एक अन्य विकल्प है।
डायब्रोटिका प्रजातियां ऐसे कीटों का एक समूह है जो आम बीन्स और मक्का सहित कृषि महत्व की अनेक फसलों पर हमला करती हैं। ककड़ी का गुबरैला प्राय: पीले-हरे रंग का होता है, और उन्हें उनके पहलुओं के आधार पर दो समूहों में विभाजित किया जाता है। पहले समूह की पीठ पर तीन काली पट्टियाँ होती हैं, जबकि दूसरे में पीठ पर बारह काले धब्बे होते हैं। वयस्क आसपास के क्षेत्रों में रहते हैं, और मध्य-वसंत में जब तापमान बढ़ने लगता है, ये सक्रिय हो जाते हैं। मादाएं अपने परपोषी पौधों के पास मिट्टी की दरारों में समूहों में अंडे देती हैं। लार्वा पहले जड़ों पर और जड़ों के अंदर भोजन करते हैं, और बाद में नई टहनियों को भी खाते हैं। जबकि वयस्क पत्तियों, पराग और फूलों का भोजन करते हैं। पर्यावरण की स्थिति पर निर्भर करते हुए, अंडे से लेकर वयस्क तक के विकास में लगभग एक महीना लग जाता है। तापमान में वृद्धि के कारण, विकास का समय घट जाता है। ककड़ी के गुबरैले को पानी की अच्छी आपूर्ति वाले नमीदार क्षेत्र पसंद हैं और इसे गर्मी पसंद नहीं है।