Diatraea saccharalis
कीट
लार्वा द्वारा तनों और छिलकों को खाए जाने के कारण हुई “पिनहोल” क्षति तथा छिद्र होते हैं। नए पौधों में, एक लक्षण जिसका नाम डेड हार्ट है, तनों के अंदरूनी ऊतक खा लिए जाते हैं। पुराने पौधों में छोटे लार्वा पत्तियों के खोल तथा किनारों में छिद्र करके घुस जाते हैं। जैसे-जैसे लार्वा बड़ा होता है, वे डंठलों में सुरंग बनाने लगते हैं। अत्यधिक संक्रमित पौधे कमज़ोर हो जाते हैं तथा छोटे रह जाते हैं और अंततः जलवायु परिस्थितियाँ अनुकूल न होने पर झुक या टूट जाते हैं। अंततः पौधों में हर स्थान पर छिद्र पाए जाते हैं और उपज तथा रस की गुणवत्ता कम होती है।
छिद्रकों के 27-100% तक अण्डों को मारने के लिए गन्ने के बीजों को 25.6 डिग्री से. पर 72 घंटों के लिए पानी में भिगो कर रखें। इस उपचार के बाद अंकुरण प्रभावित नहीं होता है, तथा भीगे हुए बीज बेहतर तौर पर खड़े हो पाते हैं। डी. सैशारेलिस की जनसंख्या को अनेक परजीवियों तथा शिकारियों के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। अण्डों की संख्या को कम रखने के लिए चींटियों, विशेषकर लाल फायर चींटियों सोलेनोप्सिस इनविक्टा, का प्रयोग करें अथवा ट्राईकोग्रामा नामक परजीवी कीट का उपयोग करें।
हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। आर्थिक हानि पहुंचाने लायक जनसँख्या के लिए खेतों पर निगरानी रखें। वयस्क लार्वा को डंठलों में सुरंग बनाने से रोकने के लिए क्लोरेन्ट्रेनिलिप्रोल, फ्लुबेंडियामाइड वाले कवकरोधकों या कीटों के विकास नियंत्रकों का प्रयोग करें।
तापमान जीवन चक्र की लम्बाई निर्धारित करता है। लार्वा को विकास के लिए ऊष्ण मौसम में आम तौर पर 25 से 30 दिनों की आवशयकता होती है, तथा ठन्डे मौसम में लगभग 5 दिन अधिक लगते हैं। सर्दियों में तेज़ बारिश और कम तापमान छिद्रकों की जनसंख्या कम कर देता है। गर्म तापमान तथा कम वर्षा कीट के जीवित रहने तथा विकास में सहायक होता है। कम जुताई वाली कृषि कीट को संक्रमित फसल अवशेषों में सर्दियों में जीवित रहने में सहायक होती है। प्राकृतिक शिकारियों की कमी से भी ऐसा ही होता है। नाइट्रोजन उर्वरक का उच्च स्तर भी जीवित रहने में सहायक होता है।