Grapholita molesta
कीट
क्षति मेज़बान पौधों की टहनियों और फलों पर लार्वा के हमले के कारण होती है। युवा लार्वा बढ़ते हुए तनों में छिद्र बनाते हैं और अंदर के ऊतकों को खाते हुए नीचे की ओर जाते हैं। संक्रमित टहनियों की पत्तियाँ मुरझाई हुई होती हैं जो कि अंकुर के अन्दर ही मृत होने का एक संकेत है। मुरझाई हुई पत्तियों की संख्या जितनी ज्यादा होगी, लार्वा उतने ही अन्दर तक घुस चुका होगा। अंत में, टहनियाँ गहरे रंग की हो जातीं हैं या उनकी पत्तियाँ सूख जाती हैं और उनसे चिपचिपा स्राव निकलता है। बाद की पीढ़ियाँ तनों से फलों मे प्रवेश करती हैं तथा प्रायः बीज के समीप, गूदे में टेढ़े-मेढ़ रास्ते बनाती हैं। फलों पर गोंद जैसे स्राव तथा लार्वा के मल से घिरे हुए बाहर निकलने के छिद्र दिखाई देते हैं। अवसरवादी रोगाणु इन घावों में बसती बसा सकते हैं। फल विकृत हो जाते हैं तथा गंभीर रूप से प्रभावित होने पर गिर जाते हैं। आम तौर पर, लार्वा एक ही फल को खाते हैं और फल से वापस टहनियों पर नहीं जाते हैं।
ट्राईकोग्रामा प्रजाति की कई कीट-परजीवी ततैया तथा ब्रैकोनिड ततैया मैक्रोसेंट्रस एन्सिलिवोरस का इस्तेमाल ओरिएंट फल पतंगा के विरुद्ध किया जा चुका है। कई कवक तथा जीवाणु, उदाहरण के लिए बोवेरिया बैसियाना तथा बैसिलस थुरिंजिएंसिस भी प्रभावी हैं। अण्डों तथा लार्वा के विभिन्न चरणों के लिए अन्य परजीवी भी ज्ञात हैं किन्तु उनका प्रयोगात्मक रूप से परीक्षण नहीं किया गया है।
हमेशा एक समेकित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ-साथ उपलब्ध जैविक उपचारों को अपनाएं। इस्तेमाल का समय महत्वपूर्ण होता है और इसे तापमान तथा पतंगो की संख्या की निगरानी कर निर्धारित करना चाहिए। रासायनिक नियंत्रण अण्डों में से नए निकले हुए लार्वा को निशाना बना सकता है किन्तु इसका प्रयोग आम तौर पर तब अधिक प्रभावी होता है जब जी. मोलेसटा उड़ने में समर्थ हो जाता है। छिड़काव किए जा सकने वाले फेरोमोन पर आधारित समागम बाधकों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
ओरिएंटल फल पतंगा के प्राथमिक मेज़बान आडू और नेक्टराइन हैं लेकिन यह अन्य गुठली वाले फलों के साथ-साथ श्रीफल, सेब, नाशपाती तथा गुलाब पर भी हमला करता है। पतंगे कोयले जैसे रंग के होते हैं तथा इनके पंखों का फैलाव 5 मिमी तक होता है। आगे के पंख धूसर होते हैं तथा उन पर अस्पष्ट हलकी और गहरी धारियाँ होती हैं। वसंत में बाहर निकलने के बाद मादाएं पत्तियों की निचली सतह या टहनियों पर लगभग 200 छोटे, चपटे, सफ़ेद अंडे एक-एक करके देती हैं। युवा लार्वा का शरीर क्रीम जैसे सफ़ेद रंग का होता है जो बाद में गुलाबी-सा हो जाता है, लम्बाई करीब 8 से 13 मिमी तथा सिर काले से कत्थई रंग का होता है। प्रथम पीढ़ी के लार्वा बढ़ते हुए प्ररोहों में पत्तियों के आधार पर छिद्र बनाते हैं। वहाँ से वे अन्दर के मुलायम ऊतकों को खाते हुए नीचे की ओर बढ़ते हैं जिसके कारण अंततः टहनी मुरझा जाती है। बाद की पीढ़ियाँ तने के आधार के समीप से या किनारे से प्रवेश करते हुए फलों पर हमला करती हैं। वे बाद में रेशम के कोकून में पूर्ण विकसित लार्वा के रूप में सुरक्षित स्थानों जैसे कि किसी छाल के शल्क या पेड़ के आधार के समीप के कचरे में सर्दियों में जीवित रहते हैं।