Ceratitis capitata
कीट
जिन फलों पर मक्खियों के द्वारा आक्रमण किया गया है वे मादाओं के द्वारा चयनित अण्डा देने के स्थान पर छिद्रों के चिन्ह दर्शाते हैं। प्रभावित फल समय से पूर्व पककर सड़ जाते हैं, उनसे मीठे रस का रिसाव हो सकता है और कभी-कभी वे गिर सकते हैं। अवसरवादी फफूंद छिद्रों या फल के रिसाव के चारों ओर पैदा हो सकते हैं। मक्खियों चाँदी के रंग की छाती होती है जिसपर काले रंग के धब्बे होते हैं, उनका पेट पीले-भूरे रंग का होता है और उस पर गहरे रंग की धारियां होती हैं। उनके पंख स्पष्ट होते हैं जिनपर हल्के भूरे रंग की पट्टियाँ होती हैं और काले रंग के चकत्ते होते हैं।
परजीवी कीटों और परभक्षियों का उपयोग करके कुछ जैविक नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। सेराटिटिस केपिटेटा कई प्रकार की परजीवी फफुंदियों (जैसे ब्यूवेरिया बासियाना) व गोल कीड़ों (नीमाटोड) के प्रति संवेदनशील होता है। इस उपचार का परिणाम प्रभावित फसल (या फल) पर बहुत हद तक निर्भर करेगा। गर्म पानी की भाप के साथ विभिन्न प्रकार के ऊष्मा वाले उपचार (उदाहरण के लिए 8 घण्टों के लिए 44° से.), गर्म पानी और कृत्रिम गर्म-हवा के साथ-साथ ठंडे उपचारों का प्रयोग संभावित रूप से संक्रमित क्षेत्रों से आने वाले फलों पर किया जा सकता है। इन उपचारों का प्रयोग भण्डारण, परिवहन या दोनों के दौरान किया जा सकता है। परंतु, ये सभी फलों की भंडारण अवधि को कम करते हैं। फ़सल की सुरक्षा के लिए स्पिनोसेड का सही समय पर उपयोग भी किया जा सकता है।
यदि उपलब्ध हो, तो जैविक उपचार और बचाव उपायों के साथ एक संयुक्त दृष्टिकोण पर हमेशा विचार करें। फलों की रक्षा करने के लिए कीटनाशकों में फलों को डुबोना एक स्वीकार्य विधि है। फसलों के लिए कवर स्प्रे का सुरक्षात्मक उपचार भी उपयोग किया जा सकता है, लेकिन ये महंगे हो सकते हैं। एक ही जाल में नरों व मादाओं दोनों को आकर्षित करने वाले लुभानेवाले प्रोटीन से युक्त बेट स्प्रे के साथ एक उपयुक्त कीटनाशक (मेलाथियोन) उपचार का एक अधिक स्वीकार्य प्रकार है।
ये लक्षण भूमध्यसागरीय मक्खी सेराटिटिस केपिटेटा के लार्वा की आहार ग्रहण क्रिया के कारण होता है। इसके नाम के बावजूद, यह भूमध्यसागरीय क्षेत्र के अतिरिक्त, उप-सहारा अफ्रिका के लिए स्थानीय होती है, और यह मध्य-पूर्व, दक्षिण व मध्य अमेरिका और आस्ट्रेलिया में भी पाई जाती है। मादा पके हुए फल या छोटे फल के नरम छिलके में छेद करके उस छिद्र में, छिलके के नीचे, अण्डे देती है। अण्डों से निकलने के बाद, लार्वा फल के गूदे से आहार प्राप्त करता है तथा अक्सर इतना गंभीर नुकसान पहुँचाता है कि वह खाने लायक नहीं रहते हैं। यह एक पालीफ़ेगस कीट होता है, अर्थात् यह अनेक प्रकार के फलों से आहार प्राप्त कर सकता है। अगर पसंदीदा पौध पहुँच में नहीं है, तो यह नए फल को भी आसानी से संक्रमित कर सकता है। यह भी प्रमाण उपलब्ध है कि यह जिन फलों पर आक्रमण करता है उनपर उगने वाला अवसरवादी फफूंद का परिवहन कर सकता है। यह एक अत्यधिक आक्रामक प्रजाति है जो बहुत ही भिन्न प्रकार के पर्यावरणों में तथा तुलनात्मक रूप से, 10° व 30° से. के बीच की अनुकूलतम सीमा के भीतर, व्यापक तापमानों पर जीवन यापन करती है।