Spodoptera litura
कीट
नए निकले हुए लार्वा पत्तियों को तेज़ी से खाते हैं, जिसके कारण पत्तियों के ऊतक छिल जाते हैं और वे पूरी तरह झड़ जाती हैं। बड़े होने पर लार्वा फैल जाते हैं और रात में पत्तियों को लगातार खाते हैं। दिन में, वे आम तौर पर पौधे के आधार के समीप की मिट्टी में छिप जाते हैं। हल्की मिट्टी में, लार्वा मूंगफली की फलियों तक पहुँच सकते हैं और उन्हें नष्ट कर देते हैं। अधिक खाए जाने के कारण, सिर्फ़ डंठल और शाखाएं ही शेष रहती हैं।
ट्राईकोग्रामा किलोनिस, टेलेनोमास रीमस या एपेंटेलास एफ्रिकेनस प्रजाति के परजीवी कीट इन अण्डों या लार्वा पर पलते हैं। न्यूक्लियर पोलीहेड्रोसिस वायरस (एन.पी.वी.) या बेसिलस थुरिंजियेन्सिस पर आधारित जैव-कीटनाशक भी उपयोगी होते हैं। इनके अतिरिक्त, कीटों पर परजीवी कवक नोम्यूरिया रिले तथा सेराशिया मार्केसेन्स को भी पत्तियों पर छिड़का जा सकता है। चावल की भूसी, गुड़ या भूरी चीनी पर आधारित चारों को भी शाम के समय मिट्टी पर डाला जा सकता है। नीम की पत्तियों या बीज का तेल तथा पोंगामिया ग्लाब्रा के बीजों का अर्क भी मूंस्पोडोप्टेरा लिटुरा लार्वा पर विशेष प्रभावी होते हैं। जैसे, अंडों के चरण के दौरान 5 मिली/ली के हिसाब से अज़ैडिरैक्टिन 1500 पीपीएम या NSKE 5% का इस्तेमाल करने से अंडों को फूटने से रोका जा सकता है।
हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हों, का उपयोग किया जाए। कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग कीटों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सकता है। छोटे लार्वा को रोकने के लिए क्लोरपायरिफ़ोस (2.5 मिली/ली), इमामेक्टिन (0.5 ग्राम/ली), फ़्लुबेन्डियामाइड (0.5 मिली/ली), या क्लोरेन्ट्रेनिलिप्रोल (0.3 मिली/ली) के साथ इंडोक्सिकार्ब और बाईफ़ेन्थ्रिन पर आधारित उत्पादों सहित अनेक प्रकार के कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है। कीटों को आकर्षित करने वाले प्रलोभक घोल भी आबादी कम करने में मदद करते हैं, जैसे ज़हरीला चारा (5 किलो चावल की भूसी, आधा किलो गुड़ और 500 मिली क्लोरपायरिफ़ोस)।
वयस्क कीट का शरीर भूरा-कत्थई तथा सामने के पंख बहुरंगी होते हैं जिनके किनारों पर सफ़ेद लहर जैसे चिन्ह होते हैं। पिछले पंख पारदर्शी सफ़ेद होते हैं, जिनके किनारों और शिराओं के साथ भूरी रेखाएं होती हैं। मादाएं पत्तियों की ऊपरी सतह पर गुच्छों में सैकड़ों अंडे देती हैं, जो सुनहरे कत्थई रंग की परत से ढके होते हैं। अंडे फूटने के बाद, बिना बालों वाले हल्के हरे रंग के लार्वा तेज़ी से फैल जाते हैं और तेज़ी से पत्तियों को खाने लगते हैं। बड़े लार्वा गहरे हरे से कत्थई रंग के होते हैं, जिनमें किनारे की ओर गहरे धब्बे होते हैं और जिनका पेट कुछ साफ़ होता है। किनारों में दो पीली लंबी पट्टियां होती हैं, जिनके मध्य में त्रिभुजाकार काले धब्बे होते हैं। इन धब्बों के मध्य एक नारंगी पट्टी होती है। लार्वा रात में खाते हैं और दिन में मिट्टी में शरण लेते हैं। लार्वा 15 से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच पनपते हैं और 25 डिग्री सेल्सियस इनके लिए सबसे अनुकूल होता है। कम नमी और उच्च या निम्न तापमान इनकी प्रजनन क्षमता को कम करती है और इनके जीवन चक्र को बढ़ाती है।