Yponomeutidae
कीट
एपल एर्माइन पतंगे मुख्य रूप से छोड़े गए बाग़ों और घरों में लगे पेड़ों पर हमला करते हैं हालांकि ये व्यावसायिक बाग़ों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। ये जमकर पत्तियां खाते हैं जिससे शाखाओं के सिरों पर पत्तीपात हो जाता है। ये कई पत्तियों का जाल बनाकर शरणस्थल भी बनाते हैं। अगर शरणस्थल या टेंट की संख्या बहुत अधिक है तो पेड़ पूरी तरह पत्ती रहित हो सकता है। ऐसे मामलों में फलों का बढ़ना रुक सकता है और वे समय से पहले गिर सकते हैं। हालांकि यह कीट शायद ही कभी लंबी अवधि में पेड़ के स्वास्थ्य या बढ़वार को प्रभावित करता है।
अधिकतर मामलों में उपचार गैरज़रूरी है क्योंकि पेड़ों को हुई क्षति सतही होती है और इसे सहन किया जा सकता है। आम शिकारी जैसे टैकिनिड मक्खियां, चिड़ियां और मकड़ियां एपल एर्माइन पतंगा पर काबू पाने में मददगार हो सकती हैं। कीट-परजीवी ततैया एजिनियाप्सिस फसीकोलिस का आबादी कम करने और फैलाव रोकने के लिए सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया है। जीवाणु बैसिलस थुरिंजिएंसिस पर आधारित जैव-कीटनाशकों ने इल्लियों की आबादी पर काबू पाने में अच्छे नतीजे दिए हैं। संपर्क कीटनाशक पायरेथ्रम का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
हमेशा एक समन्वित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ उपलब्ध जैविक उपचारों का इस्तेमाल करें। बहुत ज़्यादा प्रकोप पर कीटनाशक का पूरे पेड़ पर अच्छी तरह छिड़काव करके काबू पाया जा सकता है। संपर्क कीटनाशक डेल्टामेथ्रिन या लैंब्डा-साइहैलोथ्रिन लार्वा पर काबू पाने में मददगार हैं। सर्वांगीम कीटनाशक एसेटामिप्रिड का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। जिन पेड़ों पर फूल आए हुए हैं, उन पर छिड़काव न करें क्योंकि यह परागण करने वाले कीटों के लिए ख़तरनाक है।
लक्षणों का कारण पोनोम्यूटॉयडी परिवार के लार्वा का भक्षण की क्रिया है। पतंगे गर्मियों के मध्य में निकलते हैं। उनका शरीर सफ़ेद, लंबा और पतला होता है जबकि पंख का फैलाव16-20 मिमी. होता हैं। आगे के पंखों पर काले धब्बे छितरे रहते हैं जबकि पीछे के पंख धूसर होते हैं जिनके कनारे झालरदार होते हैं। मादाएं कलियों या टहनियों के जोड़ों पर समूहों में पीले रंग के अंडे एक के ऊपर एक कतारों में देती है। इससे छाल पर घोसला सा बन जाता है। लार्वा कली खुलने पर बाहर निकलते हैं और पत्तियों को खाना शुरू कर देते हैं। ये हरे-पीले, करीब 20 मिमी. लंबे होते हैं और इनके शरीर पर काले धब्बों की दो कतारें होती हैं। ये पत्तियों को मिलाकर बनाए गए अपने टेंट के अंदर लगातार पत्तियां खाते रहते हैं। कई लार्वा अवस्थाओं से गुजरने के बाद पत्तियों से समूहों में लटकते तकला जैसे सिल्की ककून में लार्वा से प्यूपा बनता है। एक वर्ष में एक ही पीढ़ी पनपती है।