केला

ताड़ का लाल कीट

Raoiella indica

घुन

संक्षेप में

  • पत्तियों की निचली सतह या पत्रकों पर लाल कीटों की बसावट।
  • वहां पर कीटों द्वारा उतारी गयी अनेकों सफ़ेद त्वचा भी पाई जाती है।
  • पत्तियों के किनारे पीले पड़ जाते हैं तथा हरितहीन एवं परिगलित धब्बे बन जाते हैं।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें

केला

लक्षण

ताड़ के लाल कीट आम तौर पर बड़ी संख्या में (100-300 एकल) पत्तियों के निचली सतह पर पाए जाते हैं तथा नग्न आँखों से देखे जा सकते हैं। जीवन चक्र की सभी अवस्थाएं आमतौर पर लाल होतीं हैं, जबकि वयस्क मादाओं के शरीर पर प्रायः गहरे रंग के हिस्से देखे जा सकते हैं (सूक्ष्मदर्शी यन्त्र से दिखाई देते हैं)। जीवित कीटों के मध्य बढ़ते हुए वयस्कों द्वारा उतारी गई अनेकों सफ़ेद त्वचा भी पाई जातीं हैं। आरम्भ में पत्रकों तथा पत्तियों पर उनकी उपस्थिति के कारण किनारे स्थानीय तौर पर पीले पड़ने लगते हैं जो कि बाद में शिराओं के समान्तर बड़े हरितहीन धब्बे बनाते हुए फ़ैल जाते हैं। समय के साथ परिगलित घाव बन जाते हैं जो पीले पड़ते ऊतकों का स्थान ले लेते हैं। आम तौर पर ताड़ के निचले पत्रक गम्भीर रूप से प्रभावित होते हैं। केलों तथा बागानों में अत्यधिक संक्रमण होने के कारण नए पौधों की मृत्यु हो जाती हैं।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

शिकारी कीट एमब्लिसियास लार्जेनेसिस को बागानों में भेजा जा सकता है और ताड़ के लाल कीट की जनसंख्या कम करने में सहायता ली जा सकती है। अन्य शिकारी कीट तथा लेडी बीटल भी आर. इंडिका को खाते हैं। अतः यह आवश्यक है कि इन शिकारी कीटों की प्राकृतिक जनसंख्या को कीटनाशकों के प्रयोग से नष्ट न किया जाए।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करें जिसमे रोकथाम के उपायों और जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हों, का समावेश होना चाहिए। पोर्टो रिको में नारियल में आर. इंडिका की जनसंख्या कम करने के लिए स्पाइरोमेसिफेन, डाइकोफ़ॉल तथा एसिक्विनोसिल के मिश्रण प्रभावी होते हैं। फ्लोरिडा में कीटों पर ईटोक्सनोल, एबेमेक्टिन, पायरिडाबेन, मिल्बेमेक्टिन तथा सल्फर के उत्पादों का छिडकाव से नियंत्रण देखा गया है। इसके साथ ही एकारिसाइड एसिक्विनोसिल तथा स्पाइरोमेसिफेन के केलों पर प्रयोग से आर.इंडिका की जनसंख्या में कमी लाई गयी है।

यह किससे हुआ

क्षति ताड़ के लाल कीट रोल्ला इंडिका के कारण होती है। वे तथाकथित “नकली मकड़ी वाले कीट” के समूह के होते हैं जिनकी विशेषता चपटा शरीर तथा अन्य अनेक मकड़ी कीटों की तरह जाले बनाने की अनुपस्थिति है। वे पौधों के ऊतकों में अपनी सलाई जैसी बनावट घुसा कर उसे खाते हैं और ऊतकों के अवयवों को खाली कर देते हैं। ये कीट आसानी से हवा के बहाव या पौधशाला में संक्रमित पौधों की गतिविधियों तथा पौधों की कटी शाखाओं से प्रसारित होते हैं। इनकी जनसंख्या पर वर्षा तथा उच्च सापेक्षिक आर्द्रता का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा ऊष्ण, धूप से भरी हुई तथा शुष्क परिस्थितियों में ये बढती है। केले के अतिरिक्त ताड़ का लाल कीट कई फल उत्पादन करने वाली ताड़ की प्रजातियों जैसे कि नारियल, खजूर, तथा एरिका ताड़ और सजावटी ताड़ पर भी पाया जाता है। कुछ सजावटी ताड़ धारकों की सूची पूरी करते हैं।


निवारक उपाय

  • ध्यान रखें कि पौधों के संक्रमित पदार्थ को केले के बागानों में न ले जाएँ।
  • लाभप्रद कीटों को पलने देने के लिए कीटनाशकों के प्रयोग पर नियंत्रण रखें।
  • कीटों के लक्षण के लिए बागानों पर नियमित निगरानी रखें।
  • उपकरणों तथा कर्मचारियों के लिए उच्च स्तर की स्वच्छता अपनाएं।
  • बागान में तथा उसके आस-पास से कीट के वैकल्पिक धारकों को हटा दें।

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