Xanthomonas spp. & Pseudomonas syringae pv. tomato
बैक्टीरिया
ये जीवाणु टमाटर के पर्णसमूहों, तनों और फलों पर हमला करते हैं। जीवाणुओं के इन धब्बों के प्राथमिक लक्षणों में छोटे, पीले हरे निशान नवोदित पत्तियों पर दिखाई देते हैं, जबकि जीवाणु के कलंक से संकरे पीले आभामंडल वाले काले धब्बे बनते हैं। ये पत्तियों के किनारों और नोक पर अधिक मात्रा में होते हैं जिससे ये विकृत और मुड़ी हुई दिखतीं हैं। गम्भीर अवस्था में, जीवाणु के कलंक बढ़ कर आपस में मिल जाते हैं या एक दूसरे को ढक लेते हैं जिसके कारण अनियमित और बड़े घाव बन जाते हैं। जीवाणुओं के धब्बों के घाव बढ़ कर 0.25 से 0.5 सेंटीमीटर तक फ़ैल जाते हैं और पीले-भूरे से लेकर भूरे-लाल रंग के हो जाते हैं, जो अंततः गोली से हुए छेद से दिखने लगते हैं जब इनका केंद्र सूख जाता है। जीवाणुओं के धब्बे फलों पर भी पत्तियों के जैसे ही घाव पैदा करते हैं जो अंत में, रूखे होकर भूरे और पपड़ीदार हो जाते हैं। जीवाणुओं के कलंक सूक्ष्म, थोड़े उभरे हुए, काले धब्बे पैदा करते हैं। इन दोनों रोगों में, विशेषतः आरंभिक चरण में अंतर कर पाना मुश्किल होता है।
जीवाण्विक धब्बों का उपचार बहुत मुश्किल और खर्चीला होता है। अगर यह बीमारी मौसम के शुरूआत में होती है, तो पूरी फ़सल को नष्ट करने के बारे में विचार करें। कॉपर आधारित जीवाणुनाशक पर्णसमूहों और फलों को दोनों जीवाणुओं से सुरक्षा प्रदान करते हैं। जीवाणुओं को विशेष रूप से मारने के लिए, जीवाण्विक विषाणु (जीवाणु भोजी या बैक्टीरियोफ़ेज) जीवाणुओं के धब्बों के लिए उपलब्ध हैं। 25 मिनट के लिए 1.3 % सोडियम हाइपोक्लोराइट में या गर्म पानी (50 डिग्री सेल्सियस) में बीज को डुबोने से दोनों रोगों की संभावना को कम किया जा सकता है।
यदि उपलब्ध हो, तो रक्षक उपायों को जैविक उपचारों के साथ-साथ एकीकृत रूप से अपनायें। कॉपर युक्त जीवाणुनाशकों को संरक्षक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और बीमारी को आंशिक रूप से नियंत्रित किया जा सकता है। पहले लक्षण दिखायी पड़ने पर और उसके बाद 10 से 14 दिनों के अन्तराल पर जब गर्म (धब्बे) , नम (कलंक) स्थितियां बनी रहती हैं, तब उपयोग करें। क्योंकि कॉपर के लिए अक्सर प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है, यह सुझाव दिया जाता है कि कॉपर आधारित जीवाणुनाशक का मैंकोज़ेब के साथ उपयोग किया जाए।
जीवाण्विक धब्बे ज़ेन्थोमोनास वंश के जीवाणुओं की कई प्रजातियों के कारण होता है। यह सम्पूर्ण विश्व में और गर्म, नम पर्यावरण में उगाये जाने वाले टमाटर की सबसे विनाशकारी बीमारियों में से एक है। रोगजनक बीजों में या बीजों पर, पौधों के अपशिष्टों पर और विशेष खरपतवारों में जीवित रह सकते हैं। मिट्टी में इनका जीवित रहने का समय कुछ दिनों से लेकर कुछ सप्ताहों तक सीमित रहता है। जब स्थितियाँ अनुकूल होती हैं, तो यह वर्षा अथवा ज़मीन की ऊपरी सिंचाई से स्वस्थ पौधों तक पहुंच जाता है। यह पत्तियों के रोमछिद्रों और घावों द्वारा ऊतकों में प्रवेश कर जाते हैं। इसके लिए अनुकूल तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तक है। अगर एक बार फ़सल प्रभावित हो जाती है, तो इस बीमारी को नियंत्रित करना काफ़ी मुश्किल हो जाता है और फसल को पूरी तरह से नुकसान पहुंचता है।