Spiroplasma kunkelii
बैक्टीरिया
आमतौर पर एस. कुंकेली द्वारा होने वाले संक्रमण का पहला मुख्य संकेत पत्तियों का मुरझा जाना एवं उनके किनारों का पीला पड़ना है। इसके बाद पुरानी पत्तियाँ में लालपन आ जाता है, जो उनकी नोक से शुरू होता है और बाद में बाकी ऊतकों में भी फैल जाता है। इन लक्षणों के दिखने के कुछ दो-चार दिन बाद, नई विकासशील पत्तियों के आधार पर छोटे-छोटे हरिद्रोग के धब्बे दिखने लगते हैं। जैसे-जैसे वे बढ़ते हैं, ये धब्बे एक दूसरे से जुड़ जाते हैं तथा धारियों में बदल जाते हैं, जो पूरी शिरा के साथ-साथ अक्सर नोक तक फैली होती हैं। आरंभिक अवस्था में संक्रमित हुए पौधे गंभीर रूप से छोटे होते हैं, उनकी पत्तियाँ मुड़ी हुई एवं विकृत होती हैं तथा बहुत ही छोटे इंटरनोड (गांठों के बीच का हिस्सा) होते हैं। कई सारी बालियां एवं नई टहनियां विकसित हो सकती हैं, कभी-कभी एक ही पौधे पर 6-7 विकसित हो जाती हैं, जिससे वे झाड़ी जैसे दिखते हैं। बालियां सामान्य आकार से छोटी होती हैं तथा आमतौर पर पूरी तरह भरती नहीं हैं, और अक्सर दाने ढीले होते हैं।
एस. कुंकेली को नियंत्रित करने के लिए कोई प्रत्यक्ष जैविक उपचार उपलब्ध नहीं है। पातफुदका के गंभीर संक्रमण को नियंत्रित करने हेतु मेटरहिज़ियम एनिसोप्ले, ब्यूवेरिया बेसियाना, पेसिलोमायसेस फ़्यूमोसोरोसियस एवं वर्टीसीलियम लेकानी जैसी परजीवी कवक प्रजातियों से युक्त कुछ जैविक कीटनाशकों का प्रयोग किया जा सकता है।
उप्लब्ध होने पर, हमेशा निवारक उपायों और जैविक उपचारो के एकीकृत दृष्टिकोण की योजना बनाएं। इस रोग को नियंत्रित करने के लिए कोई भी रासायनिक उपचार उपलब्ध नहीं है। पातफुदका की आबादी को कम करने के लिए कीटनाशक का प्रयोग कर उपचार करने की सामान्यतः सलाह नहीं दी जाती है। इसलिए, निवारक उपाय पातफुदका के आगमन एवं मक्के की अवरुद्ध वृद्धि से बचने हेतु आवश्यक हैं।
लक्षण मक्के की किस्म तथा ऊंचाई पर निर्भर करेंगे। वे स्पाईरोप्लाज़्मा कुंकेल्ली के कारण उत्पन्न होते हैं, जो एक बैक्टीरिया जैसा जीव होता है और केवल मक्के के पौधों को संक्रमित करता है। डाल्बुलस मेडिस, डी. एलीमिनेटस, एक्ज़िटियेनस एक्ज़िट्योसस, ग्रामिनेला निग्रिफ़ोंस और स्टिरेलस बाइकलर जैसे कई सारे पातफुदका इस रोगाणु को सर्दियों के समय के दौरान अपने ऊपर पाल सकते हैं। जब वे बसंत ऋतु के शुरुआती समय में बाहर निकलते हैं, तो वे पौधों को खाना शुरू कर देते हैं तथा रोगाणु का संचार करते हैं। रोग के लक्षण आमतौर पर मक्के के पौधे के संक्रमित होने के लगभग 3 सप्ताह बाद दिखाई देते हैं। यह हैरानी की बात नहीं है कि गर्मियों के मौसम के दौरान यह रोग सबसे ज़्यादा गंभीर रहता है, जब पातफुदका आबादी सबसे अधिक होती है। फिर भी, यह रोग वसंत ऋतु में लगाए गए मक्के में भी हो सकता है।