धान

पुष्पगुच्छ पर जीवाणुओं का पाला लगना

Burkholderia glumae

बैक्टीरिया

संक्षेप में

  • दाने हल्के से मध्यम भूरे रंग में बदरंग होने लगते हैं।
  • बाद में, दाने अन्य जीवाणुओं या कवक के कारण भूरे से, काले या गुलाबी हो सकते हैं।
  • पुष्पगुच्छ सीधे खड़े रह सकते हैं।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें

धान

लक्षण

खेतों में इसकी गोल आकार में बढ़ने की प्रवृत्ति है। पुष्पगुच्छों के छोटे झुण्ड दाने भरने के दौरान भली प्रकार विकसित नहीं होते हैं और दानों के वज़न से झुकने के बजाय पुष्पगुच्छ सीधे खड़े रहते हैं। संक्रमित दाने पुष्पगुच्छ में असमान रूप से वितरित रह सकते हैं। संक्रमित पुष्पगुच्छ के नीचे का तना हरा रहता है। जीवाणु पुष्पीकरण के समय विकसित हो रहे दानों को संक्रमित करते हैं और दाने को बंजर बनाते हैं अथवा परागण के बाद दाने भरने के समय सड़ जाते हैं | दाने छिलके के निचले तिहाई से आधे हिस्से तक हलके से मध्यम भूरे रंग में बदरंग होने लगते हैं। ये दाने बाद में भूरे से, काले या गुलाबी हो सकते हैं, जब अन्य जीव छिलकों में स्थान बनाते हैं।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

माफ़ कीजियेगा, हम बुर्खोल्डेरिया एसपीपी. के विरुद्ध कोई वैकल्पिक उपचार नहीं जानते हैं। यदि आप ऐसा कुछ जानते हैं जो हमें इस रोग से मुकाबला करने में सहायता कर सके, तो कृपया हमसे संपर्क करें। हमें आपकी राय की प्रतीक्षा रहेगी।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। क्षमा कीजिये, हमें बर्खोल्दारिया ग्लूम के विरुद्ध कोई रासायनिक उपचार ज्ञात नहीं है। यदि आपके पास कोई जानकारी हो जिससे इस रोग के विरुद्ध लड़ने में सहायता मिले तो कृपया हमसे संपर्क करें।हम आपसे संपर्क करने की प्रतीक्षा में हैं।

यह किससे हुआ

पुष्पगुच्छ पर जीवाणुओं का पाला लगना बीजों से प्रसारित होता है। यदि संक्रमित धान को रोपा जाए तो नियंत्रण का कोई उपाय शेष नहीं रहता। रोग का प्रसार तापमान पर निर्भर करता है। पुष्पगुच्छ पर जीवाणुओं का पाला लगना पौधे के विकास के आखिरी चरण में ऊष्ण, शुष्क मौसम में बढ़ता है। इसका प्रसार बढ़ जाता है जब दिन का तापमान 32 डिग्री से अधिक तथा रात का तापमान 25 डिग्री के आसपास या उससे अधिक हो। नाइट्रोजन का उच्च स्तर भी इस रोग के फैलाव में सहायक होता है। वसंत में जल्द बुआई किये हुए चावल को बढ़ने और दाने भरने के समय ठन्डे तापमान के कारण जीवाणु के पाला पड़ने से कम हानि होती है।


निवारक उपाय

  • अपने खेतों को पूर्व की फसलों के अवशेषों से अच्छी तरह साफ़ रखें।
  • सिर्फ प्रमाणित, रोगमुक्त बीजों का ही रोपण करें।
  • यदि उपलब्ध हो तो चावल की आंशिक प्रटिरोध वाली प्रजाति का चयन करें।
  • फसल को वसंत में जल्द रोपें।
  • अपने उर्वरक कार्यक्रम पर नियंत्रण रखें तथा सलाह दी गयी मात्रा, विशेषतः नाइट्रोजन का अधिक प्रयोग न करें।
  • अत्यधिक सिंचाई से बचें।फसल की नियमित निगरानी करें और रोगग्रस्त पौधों पौधों की जांच करें।
  • गैर- धारक फसलों जैसे की दलहन के साथ फसल चक्रीकरण पर विचार करें।

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