Xanthomonas oryzae pv. oryzae
बैक्टीरिया
अंकुरों पर संक्रमित पत्तियाँ पहले पीले से भूसे जैसे रंग की हो जातीं हैं फिर मुरझा कर मर जातीं हैं। विकसित पौधों पर प्रकोप की अवधि मुख्यतः अंकुर निकलने से लेकर पुष्पगुच्छों के निर्माण तक का समय है। पत्तियों पर हलके हरे से भूरे-हरे पानी से भरे हुए धब्बे दिखाई देने लगते हैं। बाद में, इन घावों का विलय हो जाता है और असमान किनारों वाले बड़े पीलापन लिए हुए सफ़ेद घाव बन जाते हैं। पत्तियाँ पीली हो जातीं हैं और धीरे-धीरे मुरझा कर मर जातीं हैं। संक्रमण के अंतिम चरण में, पत्तियों से दूधिया जीवाणु वाला रिसाव गिरते देखा जा सकता है। ये बूंदें बाद में सूख कर सफेद पपड़ी छोड़ जातीं हैं। यह विशेषता इस रोग को कुछ तने के छिद्रकों के कारण हुए नुकसान से अलग दिखाती है। जीवाणु का पाला चावल के कुछ सबसे गंभीर रोगों में से एक है।
आज तक, चावल के जीवाणु के पाले को नियंत्रित करने के लिए कोई भी जैविक उत्पाद व्यावसायिक रूप से उपलब्ध नहीं है। कॉपर पर आधारित उत्पादों का प्रयोग लक्षणों को बढ़ाने या कम करने में सहायक हो सकता है किंतु रोग को नियंत्रित नहीं कर सकता है।
हमेशा निरोधात्मक उपायों के साथ जैविक उपचार यदि उपलब्ध हों, के समावेश पर विचार किया जाना चाहिए। जीवाणु के पाला पड़ने का मुकाबला करने के लिए, किसी प्रमाणित एंटीबायोटिक के साथ कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या कॉपर सल्फेट से बीजों के उपचार की सलाह दी जाती है।कुछ देशों में एंटीबायोटिक का प्रयोग कड़ाई से बाधित होता है, इसलिए कृपया अपने देश मे प्रचलित उपायों को जांच लें।
लक्षण जीवाणु जेन्थोमोनस ओरिजे पीवी ओरिजे के कारण होते हैं। जो खर-पतवार की घास और संक्रमित पौधों के डंठलों पर जीवित रहते हैं। जीवाणु का प्रसार हवा, वर्षा की बौछार या सिंचाई के पानी से होता है । इस प्रकार खराब मौसम (बार-बार वर्षा, हवा) , उच्च आर्द्रता (70% से अधिक)और ऊष्ण तापमान (25 से 34 डिग्री से.) के दौरान रोग का प्रकोप और तीव्रता बढ़ जाती है। नाइट्रोजन उर्वरकों का अधिक उपयोग और पास-पास रोपाई रोग के अनुककोल होती है, विशेषतः संवेदनशील प्रजातियों में। जितनी जल्दी रोग का प्रकोप होता है, उतनी अधिक उपज की हानि होती है। जब पुष्पगुच्छों के विकास के समय पौधे संक्रमित होते हैं उपज अप्रभावित रहती है किंतु टूटे हुए दानों का अनुपात उच्च होता है। रोग ऊष्ण कटिबंधीय और समशीतोष्ण दोनो परिस्थितियों में होता है, विशेषतः सिंचित तथा वर्षा पोषित निचले इलाकों में।