शिमला मिर्च एवं मिर्च

मिर्ची के पौधे का जीवाण्विक धब्बा

Xanthomonas sp.

बैक्टीरिया

संक्षेप में

  • नए पत्तों पर छोटे-छोटे, पीले-हरे घाव दिखाई पड़ते हैं।
  • पत्ते विकृत हो जाते हैं, और मुड़ जाते हैं।
  • पुराने पत्तों पर गहरे, पानी सोखे हुए घाव दिखते हैं।

में भी पाया जा सकता है


शिमला मिर्च एवं मिर्च

लक्षण

पहले लक्षण हैं, नए पत्तों पर छोटे-छोटे, पीले-हरे घाव दिखाई देना, जो साधारण तौर पर विकृत और मुड़ी हुई होती हैं। पुराने पत्तों पर घाव कोणीय, गहरे हरे रंग के और चिकनाई भरे दिखते हैं, जो पीले रंग के गोलों से घिरे होते हैं। ज़्यादातर ये पत्तों के किनारे या नोकों पर होते हैं। अंत में, ये धब्बे छेदों में बदल जाते हैं क्योंकि पत्तों के बीच का हिस्सा सूख कर फट जाता है। फलों के धब्बे (0.5 सेंमी तक के) शुरू में हल्के हरे रंग के, पानी सोखी हुई जगह जैसे होते हैं, जो बाद में भूरे होकर रूखे हो जाते हैं और पपड़ीदार हो जाते हैं।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

जीवाण्विक धब्बों का उपचार बहुत ही कठिन और खर्चीला है। ऋतु के शुरू में ही अगर यह बीमारी होती है, तो पूरी फसल को नष्ट करना ज़्यादा अच्छा है। तांबा युक्त जीवाणुनाशक पत्तों और फलों पर एक सुरक्षित परत प्रदान करते हैं। जीवाण्विक वायरस (बैक्टीरियोफ़ेगस), जो ख़ासकर जीवाणुओं का नाश करते हैं, वह भी अब उपलब्ध हैं। बीजों को एक मिनट के लिए 1.3% सोडियम हायपोक्लोराइट में डुबो के रखें या फिर गर्म पानी (50°सेल्शियस) में 25 मिनट के लिए डुबो के रखें।

रासायनिक नियंत्रण

अगर उपलब्ध है, तो जैविक उपचारों के साथ बचाव के तरीकों को भी ज़रूर अपनाएं। तांबा युक्त जीवाणुनाशकों का उपयोग संरक्षक के रूप में करके आंशिक रूप से रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है। जब गर्म और नम स्थितियां मौजूद होती हैं, तो रोग के प्रथम संकेत दिखने पर लगाएं और फिर 10 से 14 दिनों पर लगाएं। यदि सक्रिय सामग्री कॉपर और मैंकोज़ेब हो, तो बहेतर संरक्षण मिलता है।

यह किससे हुआ

जीवाण्विक धब्बों की बीमारी दुनिया भर में पाई जाती है और गर्म, नम वातावरण में पनपने वाली मिर्च तथा टमाटर के पौधों के लिए कुछ ज़्यादा ही खरतनाक होती है। इसके जीवाणु बीज के साथ सहक्रियता के माध्यम से जीवित रह सकते हैं, या तो बीज के ऊपर या फिर बीज के अंदर, साथ ही ख़ास किस्म की घास-फूस पर भी जीवित रह सकते हैं और बाद में बारिश या ऊपरी सिंचाई से फैल जाते हैं। ये पौधों में पर्ण छिद्रों के ज़रिए और घाव के ज़रिए प्रवेश करते हैं। इनको पनपने के लिए सबसे अच्छा तापमान है, 25 से 30° सेल्शियस। एक बार फसल पर इसका प्रभाव पड़ जाता है, तो फिर इस बीमारी पर नियंत्रण पाना बहुत मुश्किल है और पूरी फसल भी खराब हो सकती है।


निवारक उपाय

  • प्रमाणित, बीमारी रहित बीज उगाएं।
  • प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें।
  • छोटा पौधा जिसके पत्तों पर दाग हों, उन्हें ढूँढकर, निकाल लें और जला दें।
  • खेत और उसके आसपास से घासफूस निकाल दें।
  • पौधों के आसपास की गीली घास, पौधों को मिट्टी से होने वाले नुकसान से बचाती है।
  • औजारों और उपकरणों को साफ रखें।
  • ऊपर से सिंचाई ना करें और जब पत्ते गीले हों तो खेत में काम ना करें।
  • फसल काटने के बाद हल चलायें या पौधों के अवशेषों को निकाल फेंकें।
  • 2-3 वर्ष के उपरांत फसल चक्रीकरण की सलाह दी जाती है।

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