Erwinia amylovora
बैक्टीरिया
फायर ब्लाइट में पत्तियों, फूलों, फलों और टहनियों पर कई विशेष लक्षण नज़र आते हैं। पत्तियां और फूल कुम्हलाने लगते हैं और शुरुआत में हरे धूसर और बाद में भूरे या काले पड़ जाते हैं। पूरे मौसम के दौरान वे शाखाओं पर ही लगे रहते हैं। बढ़ती नई टहनियां भी हरी धूसर पड़ जाती हैं और मुरझाकर मुड़ जाती हैं और शेफर्ड्स क्रूक (चरवाहे का मुड़ा हुआ डंडा) की तरह दिखने लगती हैं। रोग बढ़ने पर और ज़्यादा नई टहनियां सिकुड़कर मर जाती हैं। गंभीर संक्रमण होने पर पेड़ आग में झुलसे से नज़र आते हैं, इसी कारण रोग का यह नाम पड़ा है। शाखाओं पर फोड़े बन जाते हैं, जिससे वे गहरे रंग की दिखती हैं जबकि उनकी छाल धंसी और चटकी हुई होती है। मृत छाल के नीचे लकड़ी लाल भूरे रंग की हो जाती है। गर्म, नम मौसम में पौधे के संक्रमित हिस्सों से चिपचिपे सफ़ेद तरल का स्राव हो सकता है। अगर उपचार न किया जाए तो संक्रमण जड़ों तक पहुंच जाता है और पूरा पेड़ मर सकता है।
बोर्डो मिश्रण या अन्य कॉपर उत्पादों (लगभग 0.5%) के घोल का फूल आने के दौरान कई बार इस्तेमाल करके संक्रमण कम किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल मौसम के अनुसार सही समय पर करना चाहिए। ज़्यादा नमी होने पर चार से पांच दिन के अंतराल पर इस्तेमाल करें। ध्यान रखें कि कुछ कॉपर उत्पादों से फल की सतह पर निशान पड़ सकते हैं। स्ट्रेप्टोमाइसिस लिडिकस युक्त उत्पादों का इस्तेमाल करने से भी जीवाणु का फैलाव घटता है।
हमेशा एक समन्वित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ उपलब्ध जैविक उपचारों का इस्तेमाल करें। फूल आने के दौरान फायर ब्लाइट पर नियंत्रण के लिए कॉपर आधारित उत्पादों का इस्तेमाल किया जा सकता है। परंतु, कई बार इस्तेमाल करने पर भी प्रभावी नियंत्रण नहीं हो पाता है। काट-छांट करने के बाद औज़ारों को 10% ब्लीच घोल या किसी एंटी-बैक्टीरियल क्लीनर से रोगाणुरहित करना चाहिए।
फायर ब्लाइट का कारण जीवाणु इर्विनिया अमाइलोवोरा है जो सेब, नाशपाती और इसी परिवार के सजावटी पौधों को संक्रमित करता है। गुठली वाले फल जैसे कि आलूबुखारा (प्लम), चेरी, आड़ू (पीच) और शफ़तालू (नेक्टारिंस) पर इस रोग का असर नहीं होता है। क्षति बसंत से शरद ऋतु तक दिखाई देती है। जीवाणु टहनियों, शाखाओं या तनों पर बने नासूरों में सर्दियां बिताता है। बसंत में अनुकूल परिस्थितियों में यह अंदरुनी हिस्से में दोबारा विकास शुरू करता है जिससे उनका रंग भूरा पड़ जाता है। इससे पानी और पोषक तत्वों का परिवहन बाधित हो जाता है और इस कारण नई टहनियों के सिरे मुरझा जाते हैं और अंत में नीचे की ओर मुड़कर लटक जाते हैं। बारिश की बौछारों या कीटों से जीवाणु पास के फूलों या तेज़ी से बढ़ती टहनियों पर पहुंचता है। अधिक उर्वरक मिट्टी और मिट्टी में अधिक नमी से भी रोग बढ़ता है। गर्म मौसम या घाव भी संक्रमण को बढ़ावा देते हैं।