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वाइरस
विभिन्न स्तरों के हरितरोग तथा मुख्य एवं छोटी शिराओं में पीलेपन के साथ-साथ मोज़ेक जैसे एकान्तरिक हरे एवं पीले धब्बे, छोटी-छोटी पत्तियां, कम एवं छोटे फल, एवं पौधे की अविकसित वृद्धि से रोग की पहचान की जा सकती है। शुरू में, संक्रमित पत्तियों में केवल शिराओं में पीलापन देखने को मिलता है, लेकिन बाद के चरणों में पूरी पत्ती पीली हो जाती है। जब पौधे अंकुरण के बाद के 20 दिनों के दौरान संक्रमित होते हैं, तो वे अविकसित रह जाते हैं। यदि नयी पत्तियां शुरुआती मौसम के दौरान संक्रमित होती हैं, तो वे पूरी तरह से पीली होकर भूरी हो जाती हैं और फिर सूख जाती हैं। जो पौधे पुष्पण के बाद संक्रमित होते हैं, उनमें ऊपरी पत्तियों एवं पुष्पण भागों में शिरा-समाशोधन के लक्षण दिखते हैं। वे तब भी कुछ फल पैदा करेंगे लेकिन ये पीले एवं सख्त हो जाएंगे। जो पौधे ऋतु के अंत तक स्वस्थ रूप से वृद्धि कर रहे थे तथा सामान्य रूप से फल रहे थे, उनमें तने के निचले हिस्से में कुछ छोटी-छोटी कोंपले निकल आएंगी।
रोगाणुवाहक को 5% नीम के बीज की गुठली के अर्क, या अदरक, लहसुन, एवं मिर्च के अर्क का छिड़काव कर रोकें। नागफनी, या दूध की झाड़ी (मिल्क बुश) के टुकड़े बना लें, पानी में डुबो दें (टुकड़ों के तैरने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी लें), इसे 15 दिनों तक किण्वन के लिए छोड़ दें। छानें और प्रभावित पौधों पर छिड़कें। नीम एवं सरसों का तेल, राइज़ोबैक्टीरिया, क्रोज़ोफ़ेरा तेल और उसके बाद पालमारोसा तेल लगाएं। 0.5% तेल और 0.5% धुलाई वाले साबुन के मिश्रण को भी मददगार बताया गया है।
वायरस को रासायनिक तरीकों से पूर्ण रूप से नियंत्रित नहीं किया जा सकता। इसलिए, उपलब्ध होने पर हमेशा जैविक उपचारों के साथ निवारक उपायों के एक एकीकृत दृष्टिकोण पर विचार करना उचित है। कुछ माहुओं और रोगों के खिलाफ़ मिट्टी में कीटनाशकों का प्रारंभिक इस्तेमाल सबसे प्रभावी तरीका प्रतीत होता है। माहु जल्दी से सभी कीटनाशकों के लिए प्रतिरोध विकसित कर लेता है, इसलिए विभिन्न सूत्रणों का एक चक्रानुक्रम उचित होता है। एसेटेमीप्रिड 20 एस.पी. @ 40 ग्राम a.i/हेक्टयर के दो स्प्रे मोज़ेक वायरस के पैमाने को कम करने में प्रभावी साबित हुए हैं और साथ ही साथ भिंडी की उपज को भी बढ़ाते हैं। इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल. का दो बार इस्तेमाल तथा एक बीज उपचार (इमिडाक्लोप्रिड प्रति किलोग्राम बीज में 5 ग्राम की दर से) कीटों की आबादी को 90.2% तक कम कर सकता है।
नुकसान बेगोमोवायरस के कारण होता है, जो माहुओं के माध्यम से संचारित होता है। वायरस अपने रोगाणुवाहक में अपनी संख्या नहीं बढ़ाते हैं, लेकिन विभिन्न माध्यमों से वयस्क माहु (वाइट फ़्लाई) द्वारा पौधों के बीच आसानी से फैल जाते हैं। वायरस को संचारित करने में नर की तुलना में मादा माहु अधिक कुशल होती हैं। यह वायरल रोग वृद्धि के सभी चरणों के दौरान संक्रमित करता है, हालांकि, अतिसंवेदनशील चरण 35 से 50 दिनों तक होता है। माहु की जनसंख्या एवं वायरस की उग्रता मोटे तौर पर तापमान, आर्द्रता, एवं 20-30 डिग्री सेल्सियस के न्यूनतम तापमान से प्रभावित होती है। दूसरा सबसे महत्वपूर्ण रोगाणुवाहक भिंडी का पातफुदक या ओकरा लीफ़हॉपर (अमरास्का डेवेसटेन्स) है।