PVS
वाइरस
विषाणु के लक्षण बहुत अलग-अलग होते हैं और मेज़बान, पर्यावरणीय परिस्थितियों सहित कई कारकों पर निर्भर करते हैं। अधिकतर किस्मों में विषाणु संक्रमण लक्षणविहीन ही रहता है। हालांकि दूसरी ओर, शुरुआती वृद्धि अवस्था में संक्रमण होने पर कुछ किस्में शिराओं का हल्का गहरापन, खुरदुरी पत्तियां, ज़्यादा खुली वृद्धि, पत्तियों पर समूह में हल्के धब्बों की मौजूदगी, पत्तियों का कांसे जैसा रंग (ब्रोंज़िंग) या मृत (काले) धब्बे प्रदर्शित करती हैं।
एफ़िड के कई शिकारी हैं और उन्हें अच्छे खेतीबाड़ी तरीकों का इस्तेमाल करके बढ़ावा दिया जाना चाहिए। पौधे की पत्तियों पर पानी और डिटरजेंट की कुछ बूदों से बने घोल का छिड़काव करके भी एफ़िड का सफ़ाया किया जा सकता है।
रोकथाम उपायों के साथ-साथ उपलब्ध जैविक उपचारों को लेकर हमेशा एक समेकित कार्यविधि पर विचार करें। यह सच है कि रसायनों से सीधे विषाणु का उपचार नहीं किया जा सकता है, लेकिन संचार वाहक, मुख्यतः एफ़िड, को काफ़ी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। एफ़िड और उनके संभावित रसायनिक नियंत्रण के लिए डेटाबेस की जांच-पड़ताल करें। एफ़िड पर नियंत्रण का दावा युक्त लेबल वाले कीटनाशक हमारी उत्पाद सूची में उपलब्ध हैं।
क्षति का कारण आलू का एस. विषाणु है जो कि एक कार्लावायरस है। यह मुख्य रूप से रुक-रुक कर एफ़िड (माहू) द्वारा फैलाया जाता है। हालांकि यह यांत्रिक रूप से मशीनों, औज़ारों और खेत से गुज़रते समय पौधों को क्षति पहुंचने से भी फैल सकता है। एफ़िड अब तक इसके संचार के लिए सबसे कुशल माध्यम साबित हुए हैं। हालांकि मौसम के बाद के समय में पौधे आलू के एस. विषाणु के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं।