शिमला मिर्च एवं मिर्च

मिर्च में कुकुम्बर (खीरा) मोज़ेक विषाणु

CMV

वाइरस

संक्षेप में

  • पत्तियों तथा फलों पर मोज़ेक श्रृंखला।
  • फलों पर भूरे धब्बे एवं हरीतहीन दाग़।
  • पत्तियों और डंठलों की विकृति एवं सिकुड़न।
  • अवरुद्ध विकास तथा फूलों पर सफ़ेद धारियां।

में भी पाया जा सकता है


शिमला मिर्च एवं मिर्च

लक्षण

संक्रमित प्रजाति तथा पर्यावरणीय परिस्थितियों के आधार पर लक्षण व्यापक रूप से बदलते रहते हैं। कुछ मामलों में, वायरस मौजूद हो सकता है लेकिन लक्षण छिपे या अवगुंठित होते हैं। संवेदनशील प्रजातियों में, पत्तियों एवं फलों पर पीले रंग के धब्बे या हल्के हरे एवं पीले रंग की चित्तियां देखी जा सकती हैं। कुछ किस्मों में, एक स्पष्ट छल्ले के धब्बे की आकृति या एक परिगलित रेखा दिखाई दे सकती है। युवा पत्तियां सिकुड़ी हुई एवं संकीर्ण दिखाई पड़ती हैं तथा बाकी पत्तियाँ हल्के मंद हरे रंग के साथ चमड़े जैसी प्रतीत होती हैं। पूरा पौधा गंभीर रूप से झाड़दार अवस्था के साथ अविकसित तथा विकृत हो जाता है और कभी-कभी गैर-उत्पादक भी। यदि वे विकसित होते हैं, तो फलों में अक्सर पीलेपन के साथ कई भूरे रंग के गोलाकार घाव उत्पन्न हो जाते हैं।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

पत्तियों पर खनिज तेल के स्प्रे का प्रयोग, एफ़िड्स को पत्तियों पर भक्षण करने से रोक सकता है और इस प्रकार जनसंख्या को नियंत्रित कर सकता है।

रासायनिक नियंत्रण

उपलब्ध होने पर हमेशा निवारक उपायों के साथ जैविक उपचारों के एक एकीकृत दृष्टिकोण पर विचार करें। सीएमवी के खिलाफ़ कोई प्रभावी रसायन नहीं है, न ही ऐसा कोई रसायन मौजूद है जो पौधों को संक्रमित होने से बचाता है। साइपरमेथ्रिन या क्लोरपाइरिफ़ोस से युक्त कीटनाशकों को एफ़िड्स के खिलाफ़ पत्तों पर छिड़के जाने वाला स्प्रे के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

यह किससे हुआ

लक्षण कुकुम्बर (खीरा) मोज़ेक विषाणु (CMV) के कारण होते हैं, जो कि विभिन्न प्रजातियों (फसलों के साथ-साथ कई फूलों, विशेषकर लिली, डेल्फ़ीनियम, प्रिमुलास और डेफ़नेस) को प्रभावित करता है। एफ़िड्स की 60 से 80 विभिन्न प्रजातियाँ विषाणु का संचार कर सकती हैं। संचारण के अन्य तरीकों में संक्रमित बीज और कलम एवं कार्यकर्ता के हाथों या औज़ारों पर यांत्रिक स्थानांतरण शामिल हैं। सीएमवी फसलों की जड़ों, बीजों या फूलों में तथा फूलों की सदाबहार खरपतवारों में जीवन-यापन कर सकता है। प्रारंभिक संक्रमणों में, विषाणु नए उभरे अंकुर के भीतर पूरे अंग में वृद्धि करता है और शीर्ष की पत्तियों में आकर संक्रमण ख़त्म करता है। इन पौधों पर भक्षण करने वाले एफ़िड्स इसे अन्य मेज़बानों में ले जाते हैं (द्वितीयक संक्रमण)। विषाणु पौधों के विभिन्न अंगों के बीच लंबी दूरी के संचार के लिए मेज़बानों की संवहनी ऊतक का उपयोग करता है।


निवारक उपाय

  • प्रमाणित स्रोतों से प्राप्त विषाणु-मुक्त बीजों और पल्लवों का ही प्रयोग करें।
  • यदि उपलब्ध हो, तो प्रतिरोधी या सहनशील किस्मों का रोपण करें।
  • खेतों की निगरानी करें तथा रोग के लक्षण दिखने पर पौधों को हटा दें।
  • मोज़ेक श्रृंखला दिखाने वाली किसी भी खरपतवार को हटा दें।
  • अपनी फसल के नज़दीक उगने वाली खरपतवारों के साथ-साथ वैकल्पिक मेज़बानों को भी हटा दें।
  • वानस्पतिक प्रजनन हेतु उपयोग किए गए औज़ारों या उपकरणों का विसंक्रमण सुनिश्चित करें।
  • फसलों की वृद्धि के शुरुआती हफ़्तों के दौरान प्रवासी एफ़िड्स (माहु) को बाहर करने के लिए एक फ़्लोटिंग कवर (चलायमान आवरण) संलग्न करें।
  • सबसे तीव्र प्रवणता की इस अवधि के बाद परागण सुनिश्चित करने के लिए आवरण हटा दें।
  • अवरोधक फसलों का रोपण करें जो एफ़िड्स को आकर्षित करेंगी।
  • एफ़िड्स को बड़े पैमाने पर पकड़ने के लिए चिपचिपे जाल का प्रयोग करें।
  • ज़मीन को एफ़िड निवारक वस्तु जैसे अल्युमीनियम की पन्नी द्वारा कवर करें।

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