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वाइरस
संवेदनशील रूटस्टॉक से बढ़ने वाले पेड़ो पर लक्षण प्रायः 4 वर्ष की आयु के आसपास देखने को मिलते हैं। विशेष लक्षणों में आम तौर पर छाल पर शल्क बनना, छतरी का हरा रंग उड़ना और गंभीर रूप से पेड़ की बढ़वार रुकना शामिल है। छाल पर शल्कों के बनने का अर्थ इसका फटना और कलम बांधे जाने वाले स्थान से इसकी परतें उखड़ना है। पोंसिरस ट्राईफ़ोलिएटा (ट्राईफ़ोलिएट ऑरेंज) रूटस्टॉक पर उगाए गए पेड़ सबसे अधिक संक्रमित होते हैं। जो सिट्रेंज के रूटस्टॉक पर उगाए जाते हैं उनमें लक्षण थोड़ा बाद में दिखते हैं, पेड़ की बढ़वार भी उतनी गंभीर रूप से नहीं घटती है और हमेशा छाल पर शल्क भी नहीं बनते हैं। अन्य संवेदनशील रूटस्टॉक के मामलों में, लक्षणों में रूटस्टॉक के आधार पर छाल की परतें उतरना और सामान्य रूप से पेड़ का कमज़ोर होना शामिल हैं। एक्सोकॉर्टिस का फल की गुणवत्ता पर सीधा असर नहीं पड़ता है, लेकिन कम प्रकाश संश्लेषण के कारण उपज काफ़ी कम हो जाती है।
माफ़ करें, इस वायरस के विरुद्ध किसी जैविक उपचार की जानकारी हमें नहीं है। अगर आप को कोई ऐसी बात पता है जिससे इस रोग से लड़ने में सहायता मिल सके, तो हमें अवश्य बताएं। हमें आपके संदेश का इंतज़ार रहेगा।
हमेशा एक समेकित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ-साथ उपलब्ध जैविक उपचारों को अपनाएं। नींबू वर्गीय फसलों की खेती में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों की सफ़ाई 1% ब्लीच सॉल्यूशन (1% उपलब्ध क्लोरीन) से करें।
लक्षणों का कारण सिट्रस एक्सोकॉर्टिस वायरॉयड है। यह संभवतः बिना कोई लक्षण दिखाए सभी नींबू वंश की फ़सलों में मौजूद रहता है। लक्षण तभी दिखाई देते हैं जब कोई संक्रमित कलम किसी संवेदनशील रूटस्टॉक पर रोपित करके उगाई जाती है, जैसे कि ट्राइफ़ोलिएट ऑरेंज, सिट्रेंज। वायरॉयड पौधे के रस में होता है और इस कारण यह रोपण और कलम लगाने से एक से दूसरे पेड़ में फैल सकता है। दूषित उपकरणों से छंटाई भी रोग के फैलाव का एक तरीका हो सकता है। पेड़ों की जड़ों की कुदरती कलमें बनने से भी पेड़ों के बीच वायरॉयड का संचार हो सकता है। नींबू वंश के कई अन्य वायरस के उलट, एक्सोकॉर्टिस रस चूसने वाले कीड़ों से नहीं फैलता। इसको फैलाने वाला कोई कीट वाहक ज्ञात नहीं है। बीजों से संचार अज्ञात है। एक्सोकॉर्टिस वायरॉयड उच्च तापमान और सूखी परिस्थितियां अच्छी तरह सहन कर लेता है और छंटाई उपकरण और अन्य प्रवर्धन सामग्री पर लंबी अवधि तक संक्रामक रह सकता है।