CTV
वाइरस
सीटीवी संक्रमण के लक्षण अत्यधिक परिवर्तनशील होते हैं तथा कई कारकों जैसे कि मेज़बान, विषाणु की विषाक्तता तथा मौसम परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं। तीन प्रमुख लक्षण हैं : पेड़ कमज़ोर पड़ना (“ट्रिस्टेज़ा”), तनों तथा टहनियों में गड्ढों का बनना, तथा पत्तियां पीली पड़ना। कमज़ोर पड़ने में हरितहीन पत्तियाँ तथा संक्रमित पेड़ की शाखाओं के मृत सिरे शामिल हैं। यह लक्षण दिखाई देने के बाद धीरे-धीरे, कई महीनों से लेकर वर्षों बाद हो सकता है। पेड़ तेज़ी से भी कमज़ोर पड़ सकता है जिसके कारण पहले लक्षणों के दिखाई देने के कुछ दिन बाद ही धारक की मृत्यु हो जाती है। संवेदनशील पौधों के तने तथा टहनियों पर बड़ी संख्या में गड्ढे बन जाते हैं। कुछ किस्मों में फलों पर घेरेदार तैलीय धब्बे या गोंद जैसे जमाव वाले कत्थई धब्बे विकसित हो जाते हैं।
कीट-परजीवी ततैये या गॉल मिज के साथ खेतों में कुछ परीक्षण जारी हैं। ये सिट्रस के बागानों में माहू को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित कर सकते हैं। आबादी पर नियंत्रण के लिए व्यावसायिक रूप से उपलब्ध मिश्रणों (प्राकृतिक पायरेथ्रम, वसायुक्त अम्ल), कीटनाशक साबुन या बागवानी तेलों (पौधों या मछली का तेल) का इस्तेमाल करें। पेड़ों की पत्तियों पर पानी और डिटर्जेंट की कुछ बूंदों वाले मृदु घोल के छिड़काव से भी माहू का सफ़ाया किया जा सकता है।
हमेशा एक समेकित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ-साथ उपलब्ध जैविक उपचारों को अपनाएं। विषाणु पर सीधे रासायनिक विकल्पों से नियंत्रण नहीं पाया जा सकता है। माहू के रासायनिक नियंत्रण के लिए डेटाबेस देखें।
लक्षणों का कारण सिट्र्स ट्रिस्टेज़ा विषाणु है, जो सिट्रस बागानों में विशेष तौर पर पाया जाने वाला एक विषाक्त तथा हानिकारक विषाणु है। इसे मुख्यतः काला सिट्रस माहू, टोक्सोप्टेरा सिट्रिडा, अनियमित तरीके से फैलाता है। माहू संक्रमित पौधे पर भक्षण के दौरान 5-60 मिनट में विषाणु ग्रहण कर लेता है, परंतु 24 घंटे बाद यह फैलने की क्षमता खो देता है। इस परिवार के अन्य कीट (उदाहरण के लिए कपास का माहू, एफ़िस गोसिपी) भी इसके फैलाव में सहायक हो सकते हैं। संक्रमित सामग्री से कलम लगाने से भी विषाणु अन्य खेतों में पहुंच सकता है। लक्षणों की तीव्रता विषाणु की विषाक्तता पर निर्भर है। कुछ किस्मों के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। अन्य किस्में पेड़ों को कमज़ोर करके उनकी मौत का कारण बनती हैं या तनों और शाखाओं पर गहरे गड्ढे बनाती हैं। विषाणु के संक्रमण तथा गुणन के लिए आदर्श तापमान 20-25 डिग्री सेल्सियस है।