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वाइरस
नई पत्तियों पर हल्के छींटों जैसे हरित हीनता से प्रभावित धब्बे हो जाते हैं, जो बाद में क्लोरोसिस व गलन से प्रभावित गोलाकार धब्बों व धारियों के रूप में विकसित हो जाते हैं, जो इस रोग के प्रमख लक्षण हैं। यह गलन बाद में डंठलों, ऊपर की टहनियों और कलियों तक जाती है, जिसके परिणामस्वरूप, फूल का ढाँचा सड़ जाता है, जिसके कारण इस रोग का अंग्रेज़ी में नाम ‘बड नेक्रोसिस‘ पड़ा। ऐसा घटित होने के लिए अधिक तापमान अनुकूल होता है। संक्रमित पौधों की वृद्धि कम होती है, वे सामान्य हरित हीनता से प्रभावित होती हैं, नई कलियों का प्रसार नहीं होता और नई पत्तियाँ विकृत हो जाती हैं। शंकु धब्बेदार व रंगहीन हो सकते हैं और उनमें धब्बेदार छोटे सूखे बीज होते हैं। पौधों के आरंभिक चरणों में प्रभावित हो जाने पर उपज में नुकसान होता है।
बुआई के 20 दिनों बाद ज्वार या नारियल के पत्तों के अर्क का छिड़काव करना थ्रिपों की संख्या को नियंत्रित करने में प्रभावी होता है।
हमेशा जैविक उपचारों के साथ सुरक्षात्मक उपायों के संयुक्त दृष्टिकोण पर विचार करें। विषाणुओं से होने वाले संक्रमणों का रसायन के द्वारा उपचार करना संभव नहीं है। यद्यपि, थ्रिप रोगवाहक के नियंत्रण के लिए कुछ उपचार उपलब्ध हैं। एक सुरक्षात्मक उपाय के रूप में बुआई के 30-35 दिनों बाद डायमेथोनेट जैसे कीटनाशकों का छिड़काव करने से कलियों के गलने के रोग के फैलाव में बड़ी मात्रा में कमी लायी जा सकती है।
मूँगफली की कली के गलने का रोग विषाणु के कारण होता है। पौधों का संक्रमण स्थायी तथा उन पौधों के ऊतकों और रस को खाने वाले कीटों (थ्रिप्स पाल्मी) की प्रजातियों पर निर्भर करता है। मूँगफली के पौधों की अनुपस्थिति में, थ्रिप (कीट) खेत में या खेत के चारों-ओर मौजूद इस रोग से प्रभावित होने वाले वैकल्पिक पौधों को संक्रमित करता है, उदाहरण के लिए दक्षिणी गेंदा या सदर्न मोरीगोल्ड (टेगेटस माइन्यूटा), और तिपतिया घास या सबटरेनियन क्लोवर (ट्रायफ़ोलियम सबटरेनियम)। अतः, कीटों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए विशेष रूप से इन पौधों को हटाना महत्वपूर्ण है। अधिक घनत्व में रोपण करने से भी थ्रिप मूँगफली की फसल पर नहीं/कम बैठते हैं।