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प्याज़ के पौधे को छोटा और पीला करने वाला जीवाणु (येलो ड्वार्फ़)

OYDV

वाइरस

संक्षेप में

  • परिपक्व पत्तियों पर पीली धारियाँ - चित्तीदार नमूने।
  • पत्तियां झुर्रीदार, नर्म, मुड़ी तथा मुरझाई हुई होती हैं।
  • अवरुद्ध विकास।
  • पूरे पौधे का पीला पड़ना।

में भी पाया जा सकता है

2 फसलें
लहसुन
प्याज

अन्य

लक्षण

संक्रमण विकास की किसी भी अवस्था में हो सकता है और सबसे पहले एक वर्षीय पौधों की परिपक्व पत्तियों पर दिखाई देता है। आरंभिक लक्षणों में असमान पीली धारियां होती हैं, जो धीरे-धीरे चित्तीदार नमूना बनाती हैं। जैसे-जैसे लक्ष्ण बढ़ते हैं, ये पत्तियाँ झुर्रीदार, नर्म, नीचे की ओर मुड़ी हुई हो जाती हैं, तथा अंत में मुरझा जाती हैं। जब संक्रमण अधिक होता है, तो इसके कारण पत्तियाँ पूर्ण रूप से पीली पड़ जाती हैं तथा पौधे देखने में छोटे रह जाते हैं। कंद विकसित नहीं होते हैं और यदि होते भी हैं, तो वे आकार में छोटे होते हैं तथा समय से पहले निकलने लगते हैं, उदाहरण के लिए भण्डारण के समय। बीजों के उत्पादन के लिए प्रयुक्त प्याज़ के पौधों में फूलों के तनों पर विकृति, फूलों तथा बीजों में कमी के साथ-साथ बीजों की गुणवत्ता की हानि भी दिखाई देती है। अंकुरण की दर काफ़ी हद तक प्रभावित होती है।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

इस समय, इस रोग का उपचार करने के लिए कोई जैविक उपचार उपलब्ध नहीं है। माहू के विरुद्ध उपचार के लिए 2% नीम तेल के तथा नीम की गुठली के 5% सत (एन. एस. के. ई.) के मिश्रण का प्रयोग करें।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार का उपयोग किया जाए। विषाणुओं के मामले में रासायनिक उपचार संभव नहीं है। माहू के विरुद्ध उपचार के रूप में इमामेक्टिन बेन्ज़ोएट, इन्डोक्साकार्ब या एन. एस. के. ई. का उपयोग किया जा सकता है।

यह किससे हुआ

लक्षण प्याज़ के येलो ड्वार्फ़ विषाणु (ओ वाई डी वी) के कारण होते हैं। यह खेतों में पौधों के अवशेषों में लम्बे समय तक जीवित रह सकते हैं। सामान्यतः, विषाणु खेतों में संक्रमित पौधों के भागों, जैसे कि कंद, समूह या अपने आप उगने वाले पौधों से प्रसारित होता है। इसकी धारक श्रेणी एलियम परिवार (प्याज़, लहसुन, छोटे प्याज़ तथा कुछ सजावटी एलियम) की प्रजातियों तक सीमित है। यह रोग माहू की विभिन्न प्रजातियों (उदाहरण के लिए माइज़स परसिके) द्वारा भी गैर-निरंतर तरीक़े से प्रसारित हो सकता है। ये विषाणु को मुँह में ले जाते हैं और स्वस्थ पौधों के रस को चूसते समय उसमें प्रवेश कर देते हैं। प्रायः, ये विषाणु एक ही पौधे में अन्य विषाणुओं के साथ-साथ पाया जा सकता है। संक्रमण के कारण उपज में हुई कमी का कम या अधिक होना इसी पर निर्भर कर सकता है। उदाहरण के लिए, यदि पौधे पीली धारी पैदा करने वाले लीक विषाणु से भी संक्रमित हों, तो उपज में हानि अधिक होती है।


निवारक उपाय

  • रोपाई के स्वस्थ पदार्थों या प्रमाणित स्त्रोतों के बीजों का प्रयोग करना ध्यान में रखें।
  • क्षेत्र में उपलब्ध सहनशील या प्रतिरोधक प्रजातियों का प्रयोग करें।
  • यदि यह निश्चित न हो कि रोपाई के पदार्थ स्वस्थ हैं या नहीं, तो कंद या कंद समूहों के बजाय वास्तविक बीजों का प्रयोग करें।
  • अपने पौधों या खेतों पर रोग के किसी भी प्रकार के चिन्हों के लिए निगरानी रखें।
  • रोग के प्रसार को रोकने के लिए माहू की जनसंख्या को नियंत्रित रखें।
  • वैकल्पिक धारकों का कार्य करने वाले खरपतवारों को हटा दें।
  • संक्रमित पौधे तथा पौधों के पदार्थों को हटा दें तथा उन्हें जला कर नष्ट कर दें।
  • गैर-धारकों के साथ फसल चक्रीकरण की योजना बनाएं।

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