CMV
वाइरस
संक्रमित हुई पौधों की प्रजातियों तथा वातावरण की परिस्थितियों के आधार पर लक्षण बदलते हैं। कुछ मामलों में, वायरस उपस्थित होता है किन्तु लक्षण छिपे या ढके हुए होते हैं। पत्तियों तथा फलों पर पीले से या हल्के हरे धब्बे या पीली छींटें दिखाई देती हैं। किनारे की शाखाओं तथा पत्तियों के डंठलों की लम्बाई में वृद्धि बढ़ जाती है जिसके कारण पत्तियों तथा डंठलों में नीचे की ओर मुड़ाव आ जाता है। नई पत्तियां सलवटों से भरी हुई और संकरी तथा पूरा पौधा ही बुरी तरह से अविकसित झाड़ियों जैसा दिखता है। फूलों पर सफ़ेद धब्बे दिखाई दे सकते हैं। फलों पर ऊपर की ओर तने हुए उभार बन जाते हैं जो उन्हें बाज़ार में बेचने लायक नहीं रहने देते।
पत्तियों पर खनिज तेल का छिड़काव एफ़िड को उन्हें खाने से रोक सकता है और इस प्रकार इनकी संख्या बढ़ने से रोकी जा सकती है।
यदि उपलब्ध हो, तो जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के एक एकीकृत दृष्टिकोण पर हमेशा विचार करें। सीएमवी के विरुद्ध कोई प्रभावी रसायन उपलब्ध नहीं हैं, न ही कोई ऐसा रसायन है जो पौधों को संक्रमित होने से बचा सके। साइपरमेथ्रीन या क्लोरपायरिफ़ोस वाले कीटनाशकों का उपयोग एफ़िड्स के विरुद्ध पत्तों पर छिड़काव के रूप में किया जा सकता है।
ये लक्षण क्युकम्बर मोज़ैक वायरस (सीएमवी) के कारण होते हैं, जो अनके प्रजातियों को प्रभावित करता है (क्यूकर्बिट्स, पालक, लेट्यूस, शिमला मिर्च और सेलेरी के साथ अनेक फूलों, विशेषकर लिली, डेल्फ़िनियम, प्रिमुला और डेफ़्ने)। यह विषाणु 60-80 विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के एफ़िड द्वारा ले जाया तथा प्रसारित होता है। प्रसार के अन्य तरीकों में संक्रमित मिट्टी या कलम, और किसी के हाथ या उपकरण से संक्रमण शामिल होता है। सी.एम.वी. फूलों की बारहमासी खर-पतवार में वर्ष भर रह सकता है और कभी-कभी स्वयं फसल की जड़ों, बीजों तथा फूलों में भी रह जाता है। प्राथमिक संक्रमण में, विषाणु नए उगने वाले पूरे अंकुर में उभरता है तथा ऊपरी पत्तियों तक पहुंचता है। इन पौधों पर पलने वाले एफ़िड इन्हें अन्य धारकों (द्वितीयक संक्रमण) तक ले जाते हैं। वीषाणु पौधों के विभिन्न अंगों के मध्य लम्बी दूरी तक परिवहन के लिए धारकों के वाहिकीय ऊतकों का उपयोग करता है।