Phyllosticta zingiberis
फफूंद
रोग की शुरुआत पत्तियों पर छोटे, अंडाकार पानी से भरे धब्बों के रूप में होती है। बाद में वे केंद्र में सफ़ेद हो जाते हैं और इनके किनारे गहरे रंग के और पीले आभामंडल से घिर जाते हैं। धब्बे बढ़कर आपस में मिल जाते हैं और बड़े परिगलित घाव बना लेते हैं। जब पत्तियों का अधिकांश हिस्सा घावों से भर जाता है तो यह सूख जाती हैं और अंततः मर जाती हैं।
आज तक हम इस रोग के विरुद्ध कोई भी जैविक नियंत्रक उपाय के बारे में नहीं जानते हैं। यदि आप इसके प्रकोप को या लक्षणों की गंभीरता को कम करने के बारे में कोई सफल उपाय के बारे में जानते हैं, तो हमें अवगत कराएं।
हमेशा एक समेकित दृष्टिकोण अपनाएं जिसमें निरोधात्मक उपायों के साथ, यदि उपलब्ध हों, तो जैविक उपचारों का समावेश होना चाहिए। रोग के पहली बार दिखाई देने पर बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करें या हेक्साकोनेज़ोल (0.1%), प्रोपिकोनेज़ोल (0.1%) या कार्बेंडाज़िम + मेंकोज़ेब वाले कवकनाशकों का उपयोग करें और पत्तियों पर छिड़काव को 20 दिनों के अंतराल पर दो बार दोहराएं।
लक्षणों का कारण मिट्टी से प्रसारित होने वाला कवक, फ़ाइलोस्टिक्टा ज़िन्जिबेरिस, है। प्राथमिक संक्रमण मिट्टी में या संक्रमित पौधों के अवशेषों में उपस्थित बीजाणुओं से होता है। हवा और वर्षा के छींटें अतिरिक्त संक्रमण के कारक होते हैं। रोगाणु के लिए उच्च आर्द्रता और 20 से 28 डिग्री से. के बीच का तापमान अनुकूल है। रोग के कारण कन्दों की संख्या और आकार में काफ़ी कमी आ सकती है। दो सप्ताह पुरानी पत्तियाँ अधिक संवेदनशील होती हैं।