आम

आम का पपड़ी रोग (मैंगो स्कैब)

Elsinoë mangiferae

फफूंद

संक्षेप में

  • फल पर छोटे काले घाव बनना।
  • संक्रमित तने धूसर घावों के साथ हल्के फूले हुए दिखते हैं।
  • पत्तियों पर हल्के घेरे वाले भूरे धब्बों की मौजूदगी।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें

आम

लक्षण

लक्षणों का कारण फफूंद एलसिनो मैंगीफ़ेरी है। किस्म, पेड़ के हिस्से, संक्रमण के समय ऊतक की आयु, पौधे की जीवनशक्ति और हरितमा जैसे विभिन्न कारकों पर निर्भर करते हुए लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। नए फलों पर छोटे काले घाव दिखाई देते हैं। संक्रमण तेज़ होने पर पत्तियों पर गोल या टेढ़े-मेढ़े भूरे से लेकर धूसर रंग के घाव पड़ जाते हैं। पत्तियों पर सिलवटें पड़ने लगती हैं और वे विकृत होकर झड़ने लगती हैं। घाव हल्की भूरी पपड़ी या क्षतिग्रस्त ऊतकों में बदल जाते हैं, जिससे फल बाज़ार में बेचे जाने योग्य नहीं रहते। तने पर थोड़े उभरे हुए धूसर रंग के अंडाकार से लेकर दीर्घवत्ताकार घाव दिखाई देते हैं। तनों पर बड़े, हल्के-तांबई रंग के कॉर्क जैसे कड़े क्षेत्र भी देखे गए हैं। दुर्लभ मामलों में, घाव पत्तियों पर भी नज़र आते हैं। घेरे वाले भूरे धब्बे दिखने लगते हैं और पत्तियों के किनारों पर भी घाव बन जाते हैं। पत्तियों की निचली तरफ़ कॉर्क जैसे कड़े घाव भी नज़र आते हैं। गंभीर संक्रमण होने पर पत्तियां झड़ भी सकती हैं।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

अब तक इस फफूंद के विरुद्ध कोई जैविक नियंत्रण विधि नहीं खोजी जा सकी है। फिर भी, पौधे के संक्रमित हिस्सों के लिए कॉपर आधारित फफूंदनाशकों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

रासायनिक नियंत्रण

रोकथाम उपायों के साथ-साथ उपलब्ध जैविक उपचारों को लेकर हमेशा एक समेकित कार्यविधि पर विचार करें। दो से तीन सप्ताह के अंतराल पर पुष्प कलिका उभरने से लेकर फूल लगने तक की अवस्था तक फफूंदनाशक कॉपर ऑक्सीक्लोराइड और कॉपर हाइड्रॉक्साइड या ऑक्साइड का इस्तेमाल करें। फूल आने और फल लगने के दौरान कॉपर छिड़काव की जगह मैंकोज़ेब इस्तेमाल करें। चूंकि नम परिस्थितियां फफूंद संक्रमण को बढ़ावा देती हैं, इसलिए बार-बार फफूंदनाशक के इस्तेमाल की ज़रूरत पड़ती है। इससे रसायन के धुल जाने की भरपाई हो जाती है और उपचार और प्रभावी हो जाता है।

यह किससे हुआ

आम का पपड़ी (मैंगो स्कैब) रोग दलदलीय और निचली भूमि वाले बाग़ों में दिखाई देता है। बौर आने और फल लगने की अवस्था में लंबी अवधि तक बारिश रोग प्रकट होने का कारण हो सकती है। पेड़ के केवल नए हिस्सों में ही संक्रमण की आशंका होती है, जबकि आधा आकार प्राप्त करने के बाद फल संक्रमण प्रतिरोधी हो जाता है। यह केवल पेड़ के जीवित हिस्सों पर जीवित रह सकता है। फफूंद के बीजाणु बारिश की बौछारों या हवा से फैल सकते हैं, जिससे द्वितीयक संक्रमण होता है। इसके अलावा यह मिट्टी के कूड़े में जीवित रहता है। इसके लक्षणों को भूलवश श्याम वर्ण रोग (एंथ्रेक्नोज़) के लक्षण माना जा सकता है, लेकिन एंथ्रेक्नोज़ के घाव उभरे हुए नहीं होते हैं, और पपड़ी रोग में उभरे हुए घाव होते हैं।


निवारक उपाय

  • गंभीर रूप से संक्रमित पेड़ों में रोगाणुओं का स्तर कम करने के लिए पुराने संक्रमित तनों की छंटाई करना लाभकारी है।
  • संक्रमण और रोग फैलाव रोकने के लिए मिट्टी में जीवित रह सकने वाले मृत ऊतकों को हटा दें और नष्ट कर दें।
  • चूंकि बारिश की बूंदों से बीजाणु आसानी से फैल सकते हैं, इसलिए रोग फैलाव रोकने के लिए रोगित पुष्पगुच्छ, मृत शाखाओं और सूख चुके (ममीफ़ाइड) फलों की छंटाई कर दें।

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