Colletotrichum spp.
फफूंद
लक्षणों की तीव्रता फसल के प्रकार, प्रजाति तथा वातावरण की परिस्थितियों से प्रभावित होती है। पत्तियों, तनों, फलियों तथा फूलों पर भूरे से ले कर धूप से जले हुए से रंग के घाव नजर आते हैं। ये घाव गोलाकार से ले कर अंडाकार या किसी भी असमान आकृति के हो सकते हैं और इनके किनारे लालिमा लिए हुए या बैंगनी रंग लिए हुए गहरे कत्थई रंग के होते हैं। अनुकूल मौसम की परिस्थितियों में ये संख्या में बहुत अधिक हो जाते हैं, बड़े हो जाते हैं और आपस मे मिल जाते हैं और इस प्रक्रिया के दौरान गहरे कत्थई या काले रंग के हो जाते हैं। इनका केंद्र धीरे-धीरे भूरे रंग का हो जाता है और संक्रमण के बाद के चरणों में इनमें सूक्ष्म बिखरी हुई काली चित्तियाँ नजर आतीं हैं। कुछ फसलों में पत्तियों की मध्य शिरा का लाल रंग में बदरंग होना भी देखा गया है। गम्भीर मामलों में, पत्तियाँ मुरझा कर सूख जातीं हैं और गिर जातीं हैं जिससे पौधे में असमय पर्णपात हो जाता है। तनों पर घाव लंबाई में, धंसे हुए और गहरे किनारों वाले भूरे होते हैं। जैसे-जैसे ये बढ़ते हैं, घाव तने के आधार को जकड़ लेते हैं जिससे पौधा मुरझा कर मर जाता है। तनों या शाखाओं में शीर्ष का मरना भी सामान्य है।
रोग के प्रसार को बुआई से पूर्व बीजों को गर्म पानी में डाल कर रोका जा सकता है। (तापमान और समय आपकी फसल पर निर्भर करता है) नीम के तेल का छिडकाव किया जा सकता है। जैविक कारक भी संक्रमण को नियंत्रित करने में सहायता कर सकते हैं। ट्राईकोडर्मा हेराजियम कवक और सुडोमोनस फ्लूरोसेन्स, बेसिलस सबटिलिस या बी. माईलोलिकफेसिन जीवाणु पर आधारित उत्पादों का बीज उपचार के अंग के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। एक बार लक्षण पहचान लेने के बाद कई प्रकार की फसलों में इस रोग के विरुद्ध जैविक रूप से संस्तुत कॉपर के मिश्रणों का छिड़काव किया जा सकता है।
हमेशा निरोधात्मक उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हों, के समन्वित प्रयोग पर विचार करें। छिडकाव सुबह के समय जल्द करें तथा गर्म मौसम में इसका प्रयोग करने से बचें। साथ ही, रोपाई से पहले बीजों का उपचार करें। बुआई से पहले कवक को मारने के लिए बीजों का लेपन किया जा सकता है। संक्रमण के खतरे को कम करने के लिए एजोक्सीस्ट्रोबिन, बॉस्केलिड, क्लोरोथेलोनिल, मानेब, मानकोजेब या प्रोथियोकोनजोल वाले कवकरोधकों का निरोधात्मक रूप से छिड़काव किया जा सकता है। (कृपया आपकी फसल के अनुरूप सम्मिश्रण और सलाह को जाँच लें) इन में से कुछ उत्पादों के प्रति प्रतिरोध के कुछ मामले देखे गए हैं। कुछ फसलों में, कोई भी प्रभावी उपचार उपलब्ध नहीं है। अंत मे, विदेश भेजे जाने वाले फलों पर प्रकोप को कम करने के लिए खाये जाने वाली मोम का उपयोग फसल कटने वाले उपचारों के साथ किया जा सकता है।
लक्षणों का कारण कोलेटोट्राईकम एसपीपी प्रजाति की कवक की विभिन्न प्रजातियां हैं। ये मिट्टी में, बीजों के साथ जुड़े हुए, या पौधों के अवशेषों या वैकल्पिक मेजबानों पर चार वर्षों तक जीवित रहते हैं। संक्रमण नए पौधों तक दो प्रकार से फैलता है। प्राथमिक संक्रमण तब होता है जब मिट्टी या बीजों पर पलने वाले जीवनज नवांकुरों को निकलने के समय, ऊतकों में व्यवस्थित रूप से बढ़ते हुए संक्रमित करते हैं। दूसरे प्रकार में, जीवाणु निचली पत्तियों पर बारिश के छींटों के साथ पहुंचते हैं और ऐसा संक्रमण आरंभ करते हैं जो ऊपर की ओर बढ़ता है। द्वितीयक संक्रमण तब आरंभ होता है जब पत्तियों या फलों में उत्पन्न जीवाणु वर्षा के छींटों, ओस, कीटों के चूसने या खेतों में मजदूरों के द्वारा पौधों के ऊपरी भागों या अन्य पौधों में प्रसारित होता है। ठंडे से ले कर ऊष्ण तापमान (20 से 30 डिग्री से. आदर्श) उच्च पीएच वाली मिट्टी, पत्तियों का लंबे समय तक गीला रहना, बार-बार बारिश और घनी छतरियाँ रोग के लिए अनुकूल होतीं हैं। संतुलित उर्वरीकरण फसल को एंथ्रोक्नोज के प्रति कम संवेदनशील बनाता है।