Puccinia purpurea
फफूंद
आमतौर पर लक्षण 1-1.5 महीने की आयु के पौधों में देखे जाते हैं। अलग-अलग रंग (बैंगनी, कत्थाई या लाल) के छोटे चकत्ते पहले निचली पत्तियों पर दिखाई देते हैं। प्रतिरोधी किस्मों में लक्षण इससे आगे नहीं बढ़ते हैं। अतिसंवेदनशील क़िस्मों में, जैसे ही वे बीजाणुओं से भरते हैं, चकत्ते चूर्ण, बैंगनी, गोल से लेकर लम्बे आकार के थोड़े उठे हुए दानों में बदल जाते हैं। वे इधर-उधर बिखरे हुए या पट्टियों में हो सकते हैं।जैसे-जैसे पौधे परिपक्व होते हैं, इनका रंग और भी गहरा हो सकता है। अतिसंवेदनशील क़िस्मों में दाने पूरे पौधे को ढाँक सकते हैं और संक्रमित खेत भूरे दिखते हैं। दाने पुष्पक्रम की डंठल या पत्ती की डंठल पर भी पाए जा सकते हैं।
पुचिनिया परपुरिया के खिलाफ़ कोई वैकल्पिक उपचार अब तक उपलब्ध नहीं है। यदि आपको कुछ भी ऐसा पता है जिससे इस बीमारी से लड़ने में मदद मिल सकती है, तो कृपया हमसे संपर्क करें। आपके जवाब का इंतज़ार रहेगा।
यदि उपलब्ध हो तो हमेशा रोकथाम के उपायों और जैविक उपचार के साथ एक एकीकृत इस्तेमाल पर विचार करें। अतिसंवेदनशील किस्मों पर कवकनाशी का उपयोग फ़ायदेमंद हो सकता है। बीमारी को नियंत्रित करने के लिए हेक्साकोनाज़ोल (0.1%), डाइफ़ेनाकोनाज़ोल (0.1%) और प्रोपिकोनाज़ोल (0.1%) से बने उत्पादों का उपयोग किया जा सकता है। लक्षणों के दिखने के तुरंत बाद 15 दिनों के अंतर पर इन कवकनाशकों के दो छिड़काव की सिफ़ारिश दी जाती है।
यह रोग पुचिनिया परपुरिया कवक के कारण होता है, जो मिट्टी और संक्रमित मलबे में केवल कुछ समय तक जीवित रहता है। इसलिए, इसे सर्दियों में एक वैकल्पिक मेज़बान, जैसे कि घास या कुछ खरपतवार, उदाहरण के लिए ऑक्सेलिस कॉर्निकुलाटा, की ज़रूरत होती है। हवा और बारिश से बीजाणुओं को काफ़ी दूरी तक पहुँचाया जा सकता है। उच्च सापेक्ष आर्द्रता (लगभग 100%), ओस, बारिश और ठंडा तापमान (10-12 डिग्री सेल्सियस) रोग के बढ़ने मदद करते हैं। गर्म, सूखा मौसम कवक के विकास और बीमारी की घटनाओं को धीमा कर देगा या रोक देगा। कुछ मामलों में, गंभीर रूप से संक्रमित पत्तियों का मुरझाना और सूख जाना संभव है।