धान

चावल का कंडुआ रोग (कर्नल स्मट)

Tilletia barclayana

फफूंद

संक्षेप में

  • लक्षण आमतौर पर फसल परिपक्व होने पर नज़र आते हैं।
  • दानों पर काले धब्बे दिखते हैं।
  • पौधे के अन्य भागों पर काली धूल जैसा आवरण।
  • यह रोग दानों के भ्रूणपोष के स्थान पर काले बीजाणुओं का उत्पादन करके दानों की गुणवत्ता घटाता है।
  • इस रोग की कुछ किस्में विषाक्त पदार्थों का उत्पादन करती हैं।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें

धान

लक्षण

चावल के परिपक्वता की अवस्था में पहुंचने पर लक्षण सबसे ज़्यादा स्पष्ट होते हैं। जब संक्रमित और काले दाने छिलके से बाहर आ जाते हैं तो शूक (ग्लूम) काले पड़ जाते हैं। ओस वाली परिस्थतियां होने पर सुबह के समय बीजाणु सबसे अधिक दिखते हैं। संक्रमित बालियां आंशिक या पूर्ण रूप से काली पड़ जाती हैं। बीजाणुओं के काले गुच्छे शूक से बाहर निकलने की कोशिश करते हैं। वहीं, शूक रात भर की ओस की नमी से फूल सकते हैं। संक्रमित दानों से गिरे बीजाणु पौधे के अन्य हिस्सों पर बसावट करके एक विशेष काला आवरण बनाते हैं, जो इस रोग का पता लगाने में मददगार होता है।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

कीटों और रोगों के प्रवेश, स्थापना और फैलाव की रोकथाम करने के लिए सर्वोत्तम जैव-सुरक्षा उपाय अपनाए जाने चाहिए। बैसिलस प्यूमिलस जैसे जैविक कारक भी फफूंद टिलेशिया बार्कलेना के विरुद्ध बहुत प्रभावी होते हैं।

रासायनिक नियंत्रण

रोकथाम उपायों के साथ-साथ उपलब्ध जैविक उपचारों को लेकर हमेशा एक समेकित कार्यविधि पर विचार करें। नाइट्रोजन की अधिक मात्रा इस रोग को बढ़ावा देती है। इसलिए, सही समय पर नाइट्रोजन की केवल अनुशंसित मात्रा की ही आपूर्ति करें। संक्रमण न्यूनतम रखने के लिए दानों में दूध आने की अवस्था (बूट अवस्था) में प्रोपिकोनाज़ोल युक्त फफूंद डालें। कवकनाशक जैसे कि एज़ॉक्सीस्ट्रोबिन, ट्राईफ़्लॉक्सीस्ट्रोबिन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

यह किससे हुआ

रोग फफूंद टिलेशिया बार्कलेना, जिसे नियोवोशिया होरिडा भी कहते हैं, के कारण होता है। फफूंद चावल के दानों की जगह लेकर काले बीजाणुओं के रूप में जीवित रहता है। ये हवा से फैल सकते हैं और धान की बालियों को खेत के अंदर या आसपास की फसल में फिर से संक्रमित कर सकते हैं। रोग तब फैलता है जब फफूंद के बीजाणु संक्रमित और संदूषित दानों, मशीनरी और उपकरणों तक पहुंच जाते हैं। राइस कर्नल स्मट के बीजाणु पानी पर भी तैरने में सक्षम होते हैं और इस माध्यम से भी फैल सकते हैं। बीजाणु दानों पर कम से कम 3 वर्ष तक जीवित रह सकते हैं और जानवरों की पाचन नली से गुज़र कर भी बच सकते हैं। उच्च तापमान और नमी फफूंद के विकास को बढ़ावा देते हैं। ओस वाली सुबहों में रोगग्रस्त दाने फूलकर फट जाते हैं जिससे और बीजाणुओं को फैलने का मौका मिलता है।


निवारक उपाय

  • खेतों में रोग लगने की कम आशंका वाली किस्मों का उपयोग करें, उदाहरण के लिए, लघु और मध्यम दानों वाली किस्में, जिनमें कर्नल स्मट का इतिहास न हो।
  • प्रमाणित चावल के बीज अगेती रोपित करें।
  • नाइट्रोजन उर्वरक की केवल अनुशंसित दर का ही उपयोग करें।
  • अतिरिक्त नाइट्रोजन डालने से बचें, विशेष रूप से खेत पानी से लबालब भरने से पहले।
  • रोग के प्रसार से बचने के लिए स्वच्छता का अच्छा प्रबंधन अपनाएं।
  • चावल के संक्रमित पौधे के चारों ओर 50 वर्ग मीटर क्षेत्र में संगरोध (क्वारंटीन) क्षेत्र की अनुशंसा की जा सकती है।
  • संक्रमित पौधों और आसपास के क्षेत्र को जलाकर नष्ट कर दें।

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