Rhizoctonia solani
फफूंद
रोग फूल निकलने से पूर्ण 40-45 दिनों के पौधों पर दिखाई देता है, परंतु लक्षण नए पौधों पर नज़र आ सकते हैं। लक्षण पहले पत्तियों, आवरणों तथा डंठलों पर नज़र आते हैं, और बाद में बालियों तक फैल जाते हैं। पत्तियों तथा आवरणों पर कई भीगी हुई, बदरंग, एक के अंदर एक धारियाँ तथा छल्ले दिखाई देते हैं, जो अक्सर कत्थई, ताँबे के रंग जैसे, या धूसर रंग के होते हैं। आम तौर पर शुरुआत में, लक्षण ज़मीन से ऊपर पहली तथा दूसरी पत्तियों के आवरणों पर दिखाई देते हैं। समय के साथ, संक्रमित ऊतकों पर छोटी, गोल, काली चित्तियां दिखाई देती हैं, जो बाद में बालियों तक फैल सकती हैं। भुट्टे के दाने पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और भूसी की पत्तियों को फटने के कारण समय से पूर्व सूख जाते हैं। यदि अंकुर प्रभावित होते हैं, तो पौधे के विकास बिंदु मर जाते हैं, और सारा पौधे एक सप्ताह के अंदर झुलस सकता है।
रोग के प्रकोप तथा तीव्रता को कम करने के लिए, मक्के के बीजों को 10 मिनट तक 1% सोडियम हाइपोक्लोराइट तथा 5% एथेनॉल के घोल में रखने के बाद पानी से तीन बार धोकर और सुखा कर संक्रमण मुक्त किया जा सकता है। बैसिलस सबटिलिस के मिश्रण से एक बार और उपचार करने से इस प्रभाव को बढ़ाया जा सकता है। रोग का फैलाव सीमित करने के लिए कवक ट्राईकोडर्मा हर्ज़ियेनम या टी. विरिडी युक्त उत्पादों का भी सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया है।
रोकथाम उपायों के साथ उपलब्ध जैविक उपचारों को हमेशा एक समेकित तरीके से अपनाएं। मक्के के बीजों का कैप्टान, थिरैम या मेटालेक्सिल (10 ग्राम प्रति किलोग्राम) से निवारण उपचार करने के बाद तीन बार संक्रमण मुक्त साफ़ पानी से धोकर तथा हवा में सुखा कर इस्तेमाल कर सकते हैं। कवकनाशकों का छिड़काव तब आर्थिक रूप से व्यावहारिक होता है जब संवेदनशील किस्में उगाई गईं हों तथा मौसम परिस्थितियाँ रोग की विकटता बढ़ाने वाली हों। प्रॉपिकोनाज़ॉल युक्त उत्पादों का इस्तेमाल सबसे बुरे लक्षणों से बचाने में प्रभावी है।
लक्षणों का कारण मिट्टी में पनपने वाला कवक राइज़ोक्टोनिया सोलानी है, जो मिट्टी में संक्रमित फसल अवशेषों या खरपतवार में जीवित रहता है। मौसम की शुरुआत में अनुकूल नमी तथा तापमान (15 से 35 डिग्री सेल्सियस) मिलने पर कवक वृद्धि करना शुरू कर देता है, तथा इसका निशाना नई रोपी गईं मेज़बान फसलें होती हैं। 70% सापेक्षिक आर्द्रता पर, रोग का विकास बहुत कम या अनुपस्थित रहता है, जबकि 90-100 % सापेक्षिक आर्द्रता पर, यह सबसे तेज़ी से फैलता है। कवक का फैलाव सिंचाई के पानी, खेत के पानी से लबालब भरने तथा उपकरणों और कपड़ों पर लगी संक्रमित मिट्टी इधर-उधर गिरने से होता है। रोग गर्म स्थानों के नम तथा गर्म मौसम में अधिक फैलता है। कवकनाशकों से इसका नियंत्रण बहुत मुश्किल होता है और इसलिए खेतीबाड़ी के सही तौर-तरीकों का इस्तेमाल अक्सर ज़रूरी हो जाता है।