Mycosphaerella gossypina
फफूंद
रोग मुख्य रूप से परिपक्व पौधों की पुरानी पत्तियों को प्रभावित करता है। संक्रमण के शुरुआती चरण में पत्तियों पर लाल रंग के धब्बे दिखते हैं। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, धब्बे बढ़ जाते हैं और गहरे भूरे या काले किनारों के साथ केंद्र में सफ़ेद से हल्के भूरे या धूसर हो जाते हैं। संक्रमण के समय पर निर्भर करते हुए धब्बों की आकृति गोल या टेढ़ी-मेढ़ी और आकार अलग-अलग होता है। इन धब्बों के एक के अंदर छल्ले बन जाते हैं जिनके किनारे क्रम से गहरे और हल्के भूरे या लाल होते हैं। प्रभावित पत्तियां अंत में पीली पड़ जाती हैं और फिर गिर जाती हैं।
अब तक कोई जैविक नियंत्रण तरीका ज्ञात नहीं है। यदि आपने रोग होने या रोग की गंभीरता कम करने का कोई तरीका कामयाबी से इस्तेमाल किया है तो कृपया हमें ज़रूर बताएं।
हमेशा एक समेकित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ उपलब्ध जैविक उपचारों का इस्तेमाल करें। रोग की शुरुआत में मैंकोज़ेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड युक्त फार्मूलेशन का 2 किग्रा./हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। 15 दिन के अंतराल पर दो या तीन और छिड़काव किए जा सकते हैं। इसी हिसाब से कार्बेंडिज़ेम 3 ग्राम/लीटर, कैप्टन 2 ग्राम/लीटर युक्त कवकनाशकों का इस्तेमाल करने से भी अच्छे नतीजे मिलते हैं।
लक्षणों का कारण कपास के पौधों पर हमला करने वाला सरकोस्पोरा परिवार का फफूंद माइकोस्फैरेला गॉसिपिना है। यह सोयाबीन या मिर्च पर हमला करने वाले फफूंद से अलग है। खेत में सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग और अन्य पत्ती रोगों जैसे लक्ष्य स्थल रोगो, जैसे टारगेट स्पॉट में अंतर कर पाना अक्सर मुश्किल होता है। परंतु, इस रोग की विशेष बात है कि यह आम तौर पर सूखे या पोषक तत्वों (विशेषकर पोटैशियम) की कमी से जूझ रहे कपास के पौधों में पाया जाता है। उचित उर्वरक योजना से पौधे की शक्ति बनाए रखने और उचित सिंचाई से सूखे से जूझने की नौबत न आने देने से प्राथमिक संक्रमणों को विलंबित करने में बहुत मदद मिलती है। इससे महामरी की विकटता भी कम होती है। 20-30° सेल्सियस के बीच तापमान और उच्च सापेक्षिक आर्द्रता रोग बढ़ाते हैं। बीजाणु हवा और पानी की बौछारों से स्वस्थ पत्तियों पर फैलते हैं।